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भद्रवाहु संहिता
शुभ माना है किन्तु वही उल्का प्रतिलोम होकर तिरछे रूप में सेना के ऊपर गिर तो वह सेना को भय उत्पन्न करती है ।। ५८ ॥
यतः
सेनामभिपतेत्
तस्य
सेनां प्रबाधयेत् ।
तं विजयं कुर्यात् येषां पत्तेत्सोल्का यदापुरा ॥ ५९ ॥
५०
( यतः ) जो (उल्का) उल्का (सेनां) सेना ( अभिपतेत्) के बीच गिरे तो (तस्य) उस (सेना) सेना को ( प्रबाधयेत्) बाधा पहुँचाती है (तं) वही उल्का ( यदापुरा ) आगे (पतेत्) गिरे तो ( येषां ) उस सेना की, (विजय) विजय (कुर्यात् ) कराती है। भावार्थ — जो उल्का सेना के ठीक बीचों बीच गिरे तो उस सेना को अवश्य ही कष्ट पहुँचेगा और उल्का ठीक सेना के आगे गिरे तो उस सेना की युद्ध में विजय होगी ऐसा समझना चाहिये ॥ ५९ ॥
डिम्भरूपा नृपतये बन्धमुल्का
प्रताडयेत ।
प्रतिलोमा विलोमा च प्रतिराजं भयं सृजेत् ॥ ६० ॥
(उल्का) उल्का (डिम्भ ) डिम्भ (रूपा ) रूप होकर ( प्रताडयेत् ) गिरे तो, 'ताडित करे तो (नृपतये) राजा को (बन्धं) बन्धन में डालेगी (च) और ( प्रतिलोमा ) प्रतिलोम व ( विलोमा) विलोम होकर गिरे तो ( प्रतिराजं ) प्रति राजा को ( भयं ) भय (सृजेत) उत्पन्न करेगा।
भावार्थ-यदि उल्का डिम्भ रूप होकर सेना के ऊपर गिर तो समझो राजा शत्रु राजा के बन्धन में पड़ जायगा और यदि उल्का प्रतिलोम या विलोम होकर गिरे तो शत्रु राजा बन्धन में पड़ जायगा || ६० ॥
उल्का
यस्यापि जन्मनक्षत्रं गच्छेच्छरोपमा । विदारणा तस्य वाच्या व्याधिना वर्णसङ्करैः ॥ ६१ ॥ (यस्यापि ) जिसके भी (जन्मनक्षत्रं) जन्म नक्षत्र को (उल्का) उल्का (च्छरोपमा) बाण सदृश होकर (गच्छेत) जावे तो, गिरे तो (तस्य) उस की ( विदारणा) विदारणा होगी, (वाच्या) वा (वर्णसङ्करैः ) नाना वर्ण वाली होकर गिर तो ( व्याधिना ) रोग उत्पन्न करती है।