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भद्रबाहु संहिता
भावार्थ-बहत से निमित्त शास्त्रों में कहा गया है कि यदि उल्का सफेद वर्ण की होकर जिस सेना के चारों तरफ गिरे तो समझो उस सेना को और ब्राह्मणों को घोर भय उत्पन्न होगा, महान उत्पात का निर्देशन किया गया है॥५२॥
उल्का व्यूहेष्वनीकेषु या पतेत्तिर्यमागता।
न तदा जायते युद्धं परिघा नाम सा भवेत् ।।५३॥ (उल्का) उल्का (व्यूहेष्व) सेना के (या) जो (व्यूहेषु) व्यूह रचना पर, (तिर्यमागता) तिर्यक रूप आती हुई (पतेत्) गिरे तो (परिघा नाम) परिघा नाम की (सा भवेत) वह उल्का होती है (तदा) तब (युद्ध) युद्ध (न) नहीं (जायते) होता है।
भावार्थ- यदि उल्का सेना के व्यूह पर तिर्यक रूप होकर गिरे तो भयंकर युद्ध नहीं होगा थोड़ा होकर ही रह जाएगा इस उल्का को परिघा कहते हैं॥५३॥
उल्का व्यूहेष्वनीकेषु पृष्ठतोऽपि पतन्ति याः।
क्षयव्ययेन पीडयेरन्नुभयोः सेनयोर्नुपान् ।। ५४ ॥ (उल्का) उल्का (व्यूहेष्वनीकेषु) व्यूह रचना के (याः) जो (पृष्ठतोऽपि) पीछे से भी (पतन्ति) गिरती है तो (क्षय व्ययेन) क्षय और खर्च (नुभयोः) दोनों तरह से (सेनयो) सेना को और (पान) राजा को (पीडयेरन्) पीड़ा देती है।
भावार्थ-यदि उल्का व्यूहरचना के जो पीछे के भाग में गिरे तो राजा व सेना दोनों को ही क्षय भी होता है और खर्च भी होता है। इस प्रकार उल्का दोनों तरह से उस राज्य को नुकसान पहुंचाती है सेना का भी क्षय होता है और द्रव्य का भी बहुत खर्च होता है।। ५४ ।।
उल्का व्यूहेष्वनीकेषु प्रतिलोमाः पतन्ति याः।
संग्रामेषु निपतन्ति जायन्ते किंशुका वनाः ॥५५॥ (उल्का) उल्का (व्यूहेष्वनीकेषु) सेना के व्यूहरचना पर (या:) जो (प्रतिलोमा:) अपसव्य मार्ग होकर (पतन्ति) गिरे तो (संग्रामेषु) संग्राम में (निपतन्ति) सेना गिरती है (किंशुकावनाः) किंसुकवन के समान (जायन्ते) हो जाता है।