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भद्रबाहु संहिता |
भावार्थ-यदि उल्का उदय होते हुये सूर्य या चंद्रमा के आगे-आगे गमन करे तो आक्रमणिक राजा का और प्रतिआक्रमणिक राजा को दोनों का शुभ होता है वह उल्का बाण के आकार होकर गमन करती है।॥ ४६॥
सेनामभिमुखी भूत्वा यधुल्का प्रतिग्रस्यते।
प्रतिसेना वधं विन्धात् तस्मिन्नुत्पातदर्शने ॥४७॥ (यद्युल्का) यदि उल्का (सेनामभिमुखी) सेना के सामने (भूत्वा) होकर (प्रतिग्रस्यते) प्रतिग्रसति है तो, (प्रति सेना वधं) प्रतिसेना का वध (विन्द्यात) समझो, (तस्मिन्नुत्पात) उसी के अन्दर उत्पात (दर्शने) दिखाई देगा।
भावार्थ-यदि उल्का सेना के सामने पतन होती हुई दिखाई दे तो समझो प्रतिद्वंदी राजा की सेना में उत्पात होगा, वह राजा विजयी होकर कभी नहीं जा सकता उसकी सेना का वहां ही क्षय हो जायगा ।। ४७॥
अथ यधुभयां सेनामेकैकं प्रतिलोमतः।
उल्का तुर्ण प्रपद्येत उभयत्र भयं भवेत ॥४८॥ (अथ) अथ (या) यदि (उल्का) उल्का (उभयां) दोनों (सेनाम्) सेना के बीच (ऐकेकं) एकैक को (प्रतिलोमतः) प्रतिलोम होती हुई (तूण) तूर्ण रूप होकर (प्रपद्येत) गिरती है तो (उभयत्र) दोनो सेना को ही, (भयं) भय (भवेत्) होता
भावार्थ-यदि उल्का दोनों सेना के सामने क्रम पूर्वक एकैक के सामने गिरती हुई दिखाई दे तो समझो दोनों ही राजा की सेना में उत्पात होगा॥४८॥
येषां सेनासु निपतेदुल्का नील महाप्रभा।
सेनापति वधस्तेषामचिरात् सम्प्रजायते ॥४९ ।। (येषां) जिस (सेनासु) सेना में (उल्का) उल्का (नील महाप्रभा) नीलवर्ण की महाप्रभा को धारण करती हुई (निपतेद्) गिरती है तो (तेषां) उस सेना में (सेनापति) सेनापति का (वध:) वध होगा, (अचिरात) सब जगह ऐसा ही (सम्प्रजायते) कहा
है