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| भद्रबाहु संहिता |
चारों वर्गों के लिये (विभावयेत्) विभाजित करना चाहिये। (अत:) अत: (परं) आगे, (यथाविधि) यथाविधिनुसार (सेना) सेना की (उल्का) उल्का (प्रवक्ष्यामि) कहता हूँ।
भावार्थ--जैसा ग्रह और नक्षत्र हो उसी के अनुसार फल को ब्राह्मणादि चारों वर्गों में लगा लेना चाहिये, अब आगे में सेना के ऊपर गिरने वाली उल्का का यथाविधि वर्णन करता हूँ।। ४०॥
सेनायास्तु समुद्योगे राज्ञोविविध मानवाः।
उल्का यदा पतन्तीति तदा वक्ष्यामि लक्षणम् ।। ४१॥ (सेनायास्तु) सेना के लिये जो (समुद्योगों) उद्यम किया जाता है (राज्ञो) राजा और (विविधमानवा:) विविध मनुष्यों के लिये (उल्का) उल्का (यदा) जैसी (पतन्तीति) गिरती है (तदा) उसीका (लक्षणम् लक्षण (वक्ष्यामि) कहता हूँ।
भावार्थ-जो सेना इकट्ठी करने के लिये उद्यम किया जाता है उस समय यदि उल्का गिरे उसका लक्षण कहता हूँ जो राजा और मनुष्यों के लिये होगा ।। ४१॥
उद्गच्छत् सोममक वा यधुल्का संविदारयेत।
स्थावराणां विपर्यासं तस्मिन्नुत्पात दर्शने ।। ४२॥ (उद्गच्छत्) ऊपर को उठती हुई (यद्युल्का) यदि उल्का (सोममर्क) सोम, रवि, को (संविदारयेत्) विदारण करे तो (स्थावराणां) स्थावरों को (विपर्यासं) विपरीत, (तस्मिन्नुत्पातदर्शने) उन उत्पातों का दर्शन होता है।
भावार्थ-यदि उल्का ऊपर से उठती हुई चंद्र सूर्य का विदारण करे तो स्थायी मनुष्यों को विपरीत उत्पाती दिखाई देते हैं।। ४२ ।।।
अस्तं यातमथादित्यं सोममुल्का लिखेद् यदा।
आगन्तुर्बध्यते सेना यथा चोशं यथागमम्॥४३॥ (आदित्यं) रवि (सोमं) सोम, (अस्तं) के अस्त होते हुये (उल्का) उल्का (लिखेद यदा) दिखे तो (यातम्) यायी की सेना में (यथागमम्) आने वाली (सेना) सेना का (आगन्तु) आते ही (बध्यते) वध हो जाता है।