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भद्रबाहु संहिता |
सोमो राहुश्च शुक्रश्च, केतु भीमश्च यायिनः।
वृहस्पतिर्बुधः सूर्यः सौरिश्चाऽपीहनागराः ।। ३५॥ (यायिनः) यायिका, (सामो) सोम, (राहुः) राहु (च) और (शुक्रश्च) शुक्र, (केतु) केतु, (भौमिश्च) मंगल बलवान हो, (नागरा:) नगर में स्थित राजा के लिये, गुरु, बुध, सूर्य, शनि, बलवान होना चाहिए।
भावार्थ-दूसरे राजा के ऊपर आक्रमण करने के लिये सोम, राहु, शुक्र, केतु, मंगल ये राजा के बलवान होना चाहिये, और प्रति आक्रमण करने के लिये स्थायी राजा के गुरु, बुद्ध, सूर्य, शनि ये बलवान हो तभी, आक्रमण करने वाला या प्रति आक्रमण करने वाला राजा विजयी होते हैं॥३५ ।।
हन्यर्मध्येन या उल्का ग्रहाणां नाम विद्युता।
सानिर्घाता सधूम्रा वा तत्र विन्द्यादिदं फलम् ॥ ३६॥ (या) जो (उल्का) उल्का, (ग्रहाणां) ग्रहों को (मध्येन) मध्य भाग से (हन्यु) हनन करती है, (नाम) उसका नाम (विद्युता) विद्युत उल्का है, (सानिर्घाता) वो निर्यात (सधूम्रा) और धूम सहित हो तो, (वा) उसका (तत्र) वहां पर, (विन्द्यादिद) विन्द्यादि (फल) फल होता है।
भावार्थ-जो उल्क ग्रहों को मध्य से ताडित करती है तो उसका नाम विद्युत उल्का है, वो निर्घात और धूम सहित हो तो उसका फल आगे लिखे अनुसार होता है। उसका फल मैं आगे कहता हूं उसको तुम सुनो।। ३६॥
नगरेषूपसृष्टेषु नागराणां महद्भयम् ।
यायिषु चोपसृष्टेषु यायिनां सदभयं भवेत् ।। ३७ ।। (नगरेषु) नगरवासी (पसृष्टेषु) राजा की सैन्य पर गिरे तो (नागराणां) उस सैन्य को (महद्भयम्) महान भय होता है, (यायिषु चोप सृष्टेषु) आने वाले राजा सैन्य पर गिरे तो, (यायिनां) उसे सैन्य को वैसा ही भय (भवेत्) होता है।
भावार्थ-यहां पर आचार्य ने लिखा है कि नगरस्थ राजा अपनी सेना लेकर किसी पर आक्रमण करने जाता है तो, वो यायि कहलाता है, उसी को आक्रमणिक