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तृतीयोऽध्यायः
से गिरे तो मध्य देश का व (पुच्छेन) पूँछ की तरफ से हो तो (पृष्ठतो) पृष्ठ देश को (विनाशयेत्) विनाश करती है (मध्यमा) मध्यमा (प्रशस्यन्ते) प्रसन्त (न) नहीं है (या:) जो (नभस्यु) आकाश से (उल्का:) उल्का (पतन्ति) गिरती है।
भावार्थ-जैसा पर्वकम से कहा है माने भगवान ने दिव्य ध्वनि में निमित्त ज्ञान का वर्णन किया है, उसी प्रकार मैं आपको कहता हूँ, यदि उल्का अग्र भाग से नीचे गिरे तो देश के मार्ग का नाश करती हैं, मध्य भाग से गिरे तो देश के मध्य भाग का नाश करती है, यदि उल्का पीछे के भाग से गिरे तो देश के पृष्ठ भाग का नाश करती है, आकाश से गिरने वाली उल्का मध्य भाग से गिरने वाली भी प्रशस्त नहीं तो और की तो बात ही क्या ? ।। १३-१४ ।।
स्नेहवत्योऽन्यगामिन्यो प्रशस्ताः स्युः प्रदक्षिणा:।
उल्का यदि पतेच्चित्रा पक्षिणा महिताय सा॥१५ ।। (उल्का) उल्का (यदि) यदि (स्नेहवत्यो) मध्यम स्नेह युक्त होकर (प्रदक्षिणा;) दक्षिण मार्ग से. (ऽन्यगामिन्यो) गमन करती (प्रशस्ता) प्रशस्त (स्युः) होती हैं (यदि) यदि (पतेच्चित्रा) चित्र विचित्र होकर गिरे तो (सा) वो (पक्षिणा महिताय) पक्षियों के लिए अहित कारक होती है।
भावार्थ-यदि उल्का मध्यम स्नेह युक्त होकर प्रदक्षिणी (प्रदक्षिणा देती हुई) अथवा दक्षिण मार्ग से गमन करे तो वह अच्छी है, प्रशस्त मानी गई है चित्र-विचित्र उल्का यदि रंग-बिरंगी होकर वाम मार्ग से गमन करे तो पक्षियों के लिये हानिकारक है, पक्षियों को दुःख पहुँचता है॥१५॥
श्याम लोहित वर्णा च सधः कुर्याद् महद भयम्।
उल्कायां भस्म वर्णायां पर चक्राऽऽगमो भवेत्॥१६॥
(श्याम) काली (लोहित) लाल (वर्णा) वर्ण वाली (उल्कायां) उल्का (महद) नित्य ही महान (भयम्) भय को (कुर्याद) करती है (च) और (भस्म) भस्म (वर्णायां) वर्ण वाली से (परचक्रा) पर चक्र का (अऽगमो) आगमन (भवेत्) होता है।
भावार्थ-लाल वर्ण उल्का, काली वर्ण वाली उल्का गिरे तो महान भय उत्पन्न होता है और राख (भस्म) के रंग की उल्का गिरे तो समझो पर चक्र का