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प्रथमोऽध्यायः
का अभाव होने पर भी सुख, दुःख, क्रोध, आनन्द, भय, ईर्ष्या आदि सभी प्रकार के मनोभाव पाये जाते हैं। इन भावों के पाये जाने का प्रधान कारण हमारी अज्ञात इच्छा है। स्वप्न द्वारा भविष्य में घटित होने वाली शुभाशुभ घटनाओं की सूचना अलंकृत भाषा में मिलती है, अत: उस अलंकृत भाषा का विश्लेषण करना ही स्वप्न विज्ञान का कार्य है। अरस्तू (Aristote) ने स्वप्न के कारणों का विश्लेषण करते हुए लिखा है कि जागृत अवस्था में जिन प्रवृत्तियों की और व्यक्ति का ध्यान नहीं जाता, वे ही प्रवृत्तियों अर्द्धनिद्रित अवस्था में उत्तेजित होकर मानसिक जगत में जागरुक हो जाती हैं। अत: स्वप्न में भावी घटनाओं की सूचना के साथ हमारी छिपी हुई प्रवृत्तियों का ही दर्शन होता है। दूसरे पाश्चात्य दार्शनिकों ने मनोवैज्ञानिक कारणों की खोज करते हुए बतलाया है कि स्वप्न में मानसिक जगत के साथ बाह्य जगत का सम्बन्ध रहता है, इसलिए हमें भविष्य में घटने वाली घटनाओं की सूचना स्वप्न की प्रवृत्तियों से मिलती है। डॉक्टर सी.जे. विटवे (Dr. C.J. Whitbey) ने मनोवैज्ञानिक ढंग से स्वप्न के कारणों की खोज करते हुए लिखा है कि गर्मी के कारण हृदय की जो क्रियाएँ जागृत अवस्था में सुषुप्त रहती हैं, वे ही स्वप्नावस्था में उत्तेजित होकर सामने आ जाती हैं। जागृत अवस्था में कार्य संलग्नता के कारण जिन विचारों की ओर हमारा ध्यान नहीं जाता है, निद्रित अवस्था में वे ही विचार स्वप्नरूप से सामने आ जाते हैं। पृथगगोरियन सिद्धान्त में माना गया है कि शरीर आत्मा की कब्र है। निद्रित अवस्था में आत्मा स्वतन्त्र रूप से असल जीवन की ओर प्रवृत्त होती है और अनन्त जीवन की घटनाओं को लाकर उपस्थित कर देती है। अत: स्वप्न का सम्बन्ध भविष्यत्काल के साथ भी है। विवलोनियन (Bablyonian) कहते हैं कि स्वप्न में देव और देवियाँ आती हैं तथा स्वप्न में हमें उनके द्वारा भावी जीवन की सूचनाएँ मिलती हैं, अत: स्वप्न की बातों द्वारा भविष्यत्कालीन घटनाएँ सूचित की जाती हैं। गिलजेम्स (Giljames) नामक महाकाव्य में लिखा है कि वीरों को रात में स्वप्न द्वारा उनके भविष्य की सूचना दी जाती थी। स्वप्न का सम्बन्ध देवी-देवताओं से है, मनुष्यों से नहीं। देवी-देवता स्वभावतः व्यक्ति से प्रशन्न होकर उसके शुभाशुभ की सूचना देते हैं।