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कर हस्त रेखा ज्ञान
पीनस्तना च पीनोष्ठी पीनकुक्षी सुमध्यभा।
प्रीतिभोगमवाप्नोति पुत्रैश्च सह वर्धते ॥ पीन (मोटे) स्तन कोंख और होंठवाली तथा सुन्दर कटिवाली स्त्री प्रीति और भोग पाती हुई पुत्रों के साथ बढ़ती है।
कृष्णा श्यामा च या नारी स्निग्धा चम्पकसंनिभा। स्निग्धचंदनसंयुक्ता सा नारी सुखमेधते ।।
कृष्ण वर्ण की श्यामा स्त्री (जो शीतकाल में उष्ण और उष्ण काल में शीत रहे) आवदार, चम्पा के समान वर्ण वाली, चन्दन गन्ध से युक्त हो वह सुख पाती
अल्पस्वेदाल्पनिद्रा च अल्परोमाल्पभोजना।
सुरूपं नेत्रगात्राणां स्त्रीणां लक्षणमुत्तमम् ।। पसीना का कम होना, थोड़ी नींद, थोड़े रोयें, थोड़ा भोजन, नेत्रों तथा अन्य अंगों की सुन्दरता... यह स्त्री का उत्तम लक्षण है।
स्निग्धकेशी विशालार्थी सुलोमां च सुशोभनाम्।
सुमुखीं सुप्रभां चापि तां कन्यां वरयेद् बुधः ।। चिकने केशों वाली, बड़ी आँखों वाली, सुन्दर लोम, मुख और कान्ति वाली सुन्दरी कन्या का वरण करना चाहिये।
यस्याः सरोमको पादौ उदरं च सरोमकम्।
शीघ्रं सा स्वपति हन्यात् तां कन्यां परिवर्जयेत् ।। जिसके पैर रोयेदार हों तथा पेट में भी रोयें हो, वह स्त्री शीघ्र ही पति को मारती हैं, अत: इसका वरण नहीं करना चाहिए।
यस्या रोमचये जंचे सरोममुखमण्डलम्। शुष्कगाीं च तां नारौं सर्वदा परिवर्जयेत् ।।