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भद्रबाह संहिता
२०५६
सिंहपृष्ठो नरो यः स धनं धान्यं विवर्भयेत् ।
कूर्मपृष्ठो लभेद्राज्यं येन सौभाग्यभाग्भवेत् ।। सिंह जैसी पीठ वाला धन धान्य से युक्त, और कछुये जैसी पीठ वाला राज्य सौभाग्य से युक्त होता है।
पाण्डुरा विरला वृक्षरेखा या दृश्यते करे।
चौरस्तु तेन विज्ञेयो दुःखदारिद्र्यभाजनम्॥ पण्डुर वर्ण की, विरल, वृक्ष के आकार की रेखा जिसके हाथ में हो वह दुःख और दरिद्रता से युक्त चोर होता है।
करालवक्त्रवैरूपो स नरस्तस्करः स्मृतः।
बकवानरवक्त्रश्च धनहीनः प्रकीर्तितः॥ यदि मुँह चन्द्रमा के बिम्ब जैसा हो तो धर्मशील, घोड़े के मुँह जैसा हो तो दुःखी और दरिद्र, नयायः तथा खा हो तो बोर, मुला मा वानर जैसा हो वह मनुष्य निर्धन होता है।
यस्य गंडस्थलो पूर्णी पद्मपत्रसमप्रभौ।
कृषिभोगी भवेत् सोऽपि धनवान् मानवान् पुमान् ।। जिसका गण्डस्थल भरा हुआ तथा कमल के पत्ते के समान हों वह पुरुष धन तथा मान से सहित कृषिजीवी होता है।
सिंहव्याघ्रगजेन्द्राणां कपालसदृशं भवेत् ।
भोगवन्तो नराश्चैव सर्वदक्षा विदुर्बुधाः ।। सिंह, बाघ, हाथी आदि के सदृश कपाल वाले पुरुष भोगी, चतुर ज्ञानी और श्रेष्ठ होते हैं।
रक्ताधरो नृपो ज्ञेयो स्थूलोष्ठो न प्रशस्यते।
शुष्काधरो भवेत्तस्य नुः सुसौभाग्यदायिनः॥ लाल होंठो वाला राजा होता है, मोटा होंठ अच्छा नहीं होता शुष्क अधर सौभाग्य के सूचक है।