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प्रथमोऽध्यायः
नगर कहा जाता है। पुद्गल के आकार विशेष नगर के रूप में आकाश में निर्मित हो जाते हैं। इन्हीं नगरों द्वारा फलादेश का निरूपण करना गन्धर्व नगर सम्बन्धी निमित्त कहलाता है ।
गर्भ— बताया जाता है कि ज्येष्ठ महीने की शुक्ला अष्टमी से चार दिन तक मेघ वायु से गर्भ धारण करता है। उन दिनों यदि मन्द वायु चले तथा आकाश में सरस मेघ दिखाई पड़ें तो शुभ जानना चाहिए और उन दिनों में यदि स्वाति आदि चार नक्षत्रों में क्रमानुसार वृष्टि हो तो श्रावण आदि महीनों में भी वैसा वृष्टियोग समझना चाहिए। किसी-किसी का मत है कि कार्त्तिक मास के शुक्ल पक्ष के उपरान्त गर्भ दिवस आता है। गर्गादि के मत से अगहन के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के उपरान्त जिस दिन चन्द्रमा और पूर्वाषाढ़ा का संयोग होता है, उसी दिन गर्भलक्षण समझना चाहिए । चन्द्रमा के जिस नक्षत्र को प्राप्त होने पर मेघ के गर्भ रहता है, चन्द्रविचार से १९५ दिनों में उस गर्भ का प्रसवकाल आता है। शुक्ल पक्ष का गर्भ कृष्ण पक्ष में, कृष्ण पक्ष का गर्भ शुक्ल पक्ष में, दिवस जात गर्भ रात में, रात का गर्भ दिन में एवं सन्ध्या का गर्भ प्रातः और प्रातः का गर्भ सन्ध्या को प्रसव वर्षा करता है । मृगशिरा और पौष शुक्ल पक्ष का गर्भ मन्द फल देने वाला होता है। पौष कृष्ण पक्ष के गर्भ का प्रसवकाल श्रावण शुक्ल पक्ष, माघ शुक्ल पक्ष के मेघ का श्रावण कृष्ण पक्ष, माघ कृष्ण पक्ष के मेघ का श्रावण के शुक्ल पक्ष, फाल्गुन शुक्ल पक्ष के मेघ का भाद्रपद कृष्ण पक्ष, फाल्गुन कृष्ण पक्ष के मेघ का आश्विन शुक्ल पक्ष, चैत्र शुक्ल पक्ष के मेघ का आश्विन कृष्ण पक्ष एवं चैत्र कृष्ण के मेघ का कार्त्तिक शुक्ल पक्ष वर्षाकाल है। पूर्वका मेघ पश्चिम में और पश्चिम का मेघ पूर्व में बरसता है। गर्भ से वृष्टिका परिज्ञान तथा खेती का विचार किया जाता है। मेघ का गर्भ के समय वायु के योग का विचार कर लेना भी आवश्यक है।
यात्रा - इस प्रकरण में मुख्य रूप से राजा की यात्रा का निरूपण किया है। यात्रा के समय में होने वाले शकुन-अशकुनों द्वारा शुभाशुभ फल निरूपित है। यात्रा के लिए शुभ तिथी, शुभ नक्षत्र, शुभ वार, शुभ योग और शुभ करण का होना परमावश्यक है। शुभ समय में यात्रा करने से शीघ्र और अनायास ही कार्य सिद्धि होती है।