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कर इस्त रेखा ज्ञान
दीहाहि कोमारीधरिया फलिआहि तो विआणिज्जा।
सुण्णाहि असोहगं पुडिआहिं विइ हवे जाण ॥ 37॥ (दीहाहि कोमारीधरिया) यदि ये रेखा दीर्घ हो तो कुमारी पाणिग्रहण होता है (फलिआहि तो विआणिज्जा) ऐसा फलित होता है, आप जानो (सुण्णाहिअसोहागं) यदि शून्य हो तो असौभाग्य जानो, (फुडिआहिं विइ हवे जाण) ये रेखा फूटी हुई हो तो वह व्रती बन जाता है।
भावार्थयदि ये रेखा दीर्घ हो तो उसकी कुमार अवस्था में ही शादी होती है। शून्य हो तो सौभाग्यहीन, फुटी हुई हो तो समझो वह स्त्रीव्रती बन जायगी अर्थात् उसका विवाह नहीं होगा। 37 ।।
काणंगुलिमूलोवारि रेहाओ 'जस्स तिण्णि चत्तारि।
सो होड़ पुण्णभागी रायाईणं पिणमणिज्जो॥38॥ (जस्स) जिसके (काणंगुलिमूलोवारि) कनिष्ठा अंगुली के मूल में (तिणि चत्तारि रेहाओ) तीन या चार रेखा हो तो (सो होइ पुण्णभागी) वह बड़ा ही पुण्यवान होता है (गयाईणं पिणमणिज्जो) और ऐसा मनुष्य राजा के द्वारा पूज्य होता है।
भावार्थ-जिस मनुष्य की कनिष्ठा अंगुली के नीचे तीन या चार रेखाएं हो तो वह मनुष्य बड़ा ही पुण्यवान होता है। और वह राजा के द्वारा पूजा जाता है।। 38 ||
जई ताउ दाहिणकरे आमूलाओ वि होई जणपुज्जो।
अह वामे तो पच्छा सव्वेसि सेवणिज्जइयो । 39॥ (जइ ताउ दाहिणकरे) यदि यह रेखाएँ दाहिने हाथ में हो तो (आमूलाओ विहोइ जणपूज्जो) प्रारम्भ से ही उस मनुष्य की पूजा होती है (अहवामे तो पच्छा) यदि ये रेखा वाम हाथ में हो तो बुढ़ापे में (सव्वेसि सेवणिज्जइयो) सबके द्वारा पूजा जाता है।
भावार्थ-यदि यह रेखा जिसके भी दाहिने हाथ की कनिष्ठा के मूल में