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अंगुइयस्स हिडे दरस व खाणं
कर हस्त रेखा ज्ञान
अखंडे समफले जवे जस्स ।
मल्लं सव्वत्थ संपयडड़ || 31 |
(जस्स) जिसके (अंगुष्ठयस्स हिडे) अंगूठे के नीचे (अखंडे) खण्ड (समफले जवे) सम फलयव वाला हो तो ( तस्सम) उसके ( खाणंपाणं मल्लं) खान-पान और माला (सव्वत्थ संपयडइ) आदि से सम्मान प्राप्त होता है ।
भावार्थ — जिसके अंगूठे के नीचे अखण्ड सम फल वाला यव हो तो समझो ऐसे मनुष्य को सर्वत्र खान, पान, माला आदि से सम्मान प्राप्त होता है ।। 31 ।।
अंगुट्टयस्स मज्झे केदारं जवहवियज्ज पुरिसस्स । सो होइ सुक्खभागी पावड़ पुणखत्तिओ रज्जं ॥ 32 ॥ (अंगुट्ठयस्स मज्झे) अंगूठे के मध्य यदि (केदारं जइ हविज्ज पुरिसस्स) केदार पुरुष हो तो ( सो होइ सुक्ख भागी) वह सुख का भागी होता है (खत्तिओ पुण पावइ रज्ज) अगर वह क्षत्रिय हो तो राज्य को पाता है।
भावार्थ- अंगूठे के मध्य यदि केदार हो तो उस पुरुष को सुख की प्राप्ति होती है, और अगर वह क्षत्रिय हो तो राज्य को प्राप्त करता है । 32 ॥
केआर मइगयाओ रेहाओ जत्ति आउ दीसंति । तित्ताइ बंधणाई पावइ अत्थक्यंपुरिस || 33 1
(केआर मइगयाओ रेहाओ ) यदि केदार को रेखा (जत्ति आउ दीसंति) जितनी काटे (तित्ताइ बंधणाई पावर) उतनी ही बार वह व्यक्ति जेल के बन्धन में पड़ता है (अत्थक्खयंपुरिसो) और उतने ही बार धन क्षय को प्राप्त होता है।
भावार्थ - यदि केदार को जितनी रेखा काटती है। उतने ही बार वह पुरुष जेल में जाता है। और उतने ही बार वह धन क्षय को प्राप्त होता है | 3311
अंगुझ्यस्स मूले कागपयं होइ जस्सपुरिसस्स । सो पच्छिमम्मि काले सूलेणविवज्जए पुरिसो ॥ 34 ॥ (जस्सपुरिसस्स) जिस पुरुष के हाथ में (अंगुहयस्स मूले कागपर्य होइ) अंगूठे