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भद्रबाहु संहिता
कुछ झुकी हुई या कोई सुन्दर लाइन उसमें से नीचे की ओर निकलती देखे (3-3 चित्र 5 ) तो उसका प्राकृतिक अर्थ यह है कि वह मनुष्य अपने जीवन की दौड़ में कम अभ्यासी हो जाता हैं था कुछ काल के लिए अधिक विचारात्मक प्रवृत्तियाँ उत्पन्न करता हैं, इस बाद की हालत में अक्सर यह देखा जाता हैं कि मनुष्य अपनी उस उम्र पर अधिक धनवान तथा सम्पन्न देखा जाता हैं और इससे वह अपनी प्रकृति की ( कला - क्षेत्र की ) उन्नति कर सकता हैं जबकि उसका आभ्यासिक संग्राम उस समय तक कुछ कम हो जाता हैं, लेकिन यह तब ही कहा जा सकता हैं, जबकि सूर्य रेखा (चित्र 15 ) स्पष्ट दिखाई पड़े या उस समय तक अचानक ही हाथ पर दिखाई पड़ जावे, तब विद्यार्थी यह विश्वास से कह सकता हैं कि उस यस मनुष्य के जीवन में अधिक पुरत तथा शान्ति होगी । तथा तब वह अपने जीवन में विचारात्मक क्षेत्र की ओर मुड़ेगा यदि मस्तिष्क रेखा स्वयं ही ऊपर की ओर, विशेष करके चौथी अंगुली या बुद्धि (Mercury) के उभार की ओर को झुके तो वह लगभग बिना किसी संशय के बतलाती हैं कि मनुष्य जितने भी दिन अधिक जीवित रहता हैं, उतनी ही उसकी इच्छा धन प्राप्त करने की या उसके विषय में सोचने की बढ़ जाती हैं, तथा वह एक आने वाले वर्ष में दृढ़ होती जाती हैं। यह मस्तिष्क रेखा अपनी स्वाभाविक जगह को जो कि बायाँ हाथ देखने पर ज्ञात होती हैं। छोड़ दे तथा ऐसा प्रतीत हो कि वह हृदय रेखा से निकलती हुई हैं तो वह प्रकट रूप से तथा स्वेच्छा से या अपनी इच्छा शक्ति से अपने स्वभाव के स्नेह क्षेत्र पर काबू करता हैं, और अपनी इच्छाओं के प्रकटीकरण के लिये झगड़ता रहता हैं यदि यह चिह्न चौकोर मोटे हाथ पर दिखाई पड़े तो यह पूर्ण निश्चय है कि उस मनुष्य ने अपने विचार को किसी पार्थिव वस्तु पर लगा लिया हैं जैसे कि धन और अपने लक्ष्य को पूरा करने में पाप करने से भी न हिचकेगा यदि यह चिह्न किसी लम्बे हाथ पर दिखाई देता है तो मानव की इच्छा दिमागी शक्ति से मनुष्यों के साथ सम्बन्ध रखती हैं। तथा अपने जीवन-पथ के लक्ष्य को पूरा करने का इरादा रखती हैं। यह चित्र केवल एक रेखा हाथ के इधर से उधर तक जाने पर ही निश्चित न होना चाहिए ( चित्र 6 ) क्योंकि इस दशा में मस्तिष्क रेखा अपने स्थान के बाहर नहीं जाती है बल्कि स्वभाव में बहुत ही तेजी बुरे या अच्छे