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भद्रबाहु संहिता
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हैं उनका प्रेम आत्मिक प्रेम होता हैं और वे शरीर के सम्बन्ध की अपेक्षा आत्मा का प्रेम अधिक पसन्द करते हैं लेकिन यदि मनुष्य इस काल में उत्पन्न हुआ हो और उभार बड़ा हो तो अपवाद (Exception) निश्चित है।
सारी मानसिक विशेषताएं दृढ़ता से अधिकार रखती है। जो मनुष्य बाद के समय में उत्पन्न होते है वे सूक्ष्म अनुभव तथा चीजों की मानसिक तराजू रखते है। वे पूर्व चिन्ता, भौतिक अनुभव, स्वप्न तथा और ऐसी दो चीजें जो कि अक्सर अपनी विवेचना शक्ति से बिगाड़ देते है तथा सारी पहेलियों का उत्तर अपने दिमाग तथा मानसिक शक्तियों से ही देना चाहते है।
प्रेम में वे सदा असफल ही होते हैं। वे अपने को केवल चले ही नहीं जाने देते (Let themselves go) जबकि वे सोचते तथा विचारते हैं। तो अपने अवसर को हिचक के कारण खो देते हैं और ऐसे प्रेम खो जाता हैं। और उन्हें पश्चात्ताप की अग्नि में झोंका जाता हैं। उन्हें अपने सबसे पहले अनुभव तथा विचार पर ही कार्य करना चाहिए तथा भाग्य जो अवसर देता हैं उसे स्वीकार करना चाहिए।
वे अपने कृपा-पात्रों के विषय में प्रश्नों से ही अपने आप मानसिक चिन्तन इकट्ठा कर लेते हैं। वे प्राय: कानून का अध्ययन करते हैं लेकिन अपने व्यक्तिगत लाभ की अपेक्षा दूसरों के लाभ के लिए अधिक बढ़ते हैं।
वे विद्या की इच्छा रखते हैं और अक्सर जीवन विचित्र विषयों के अध्ययन में व्यतीत कर देते हैं, लेकिन सदा हर एक (Point) बिन्दु को बहुत ही सतर्कता से तौलते तथा जाँचते रहते है। ये सदा डॉक्टर, जज, वकील होते हैं लेकिन सांसारिक लाभ की अपेक्षा किसी विशेष शाखा के मास्टर हो जाते हैं।
स्वास्थ्य-ऐसे मनुष्य शारीरिक शक्ति की कमी से दुःख पाते है, वे दिमाग को शक्ति का ह्रांस होना, आत्मा का गिरना, निराशा, बहुत एकान्ता महसूस करना और ऐसी ही अन्य चीजों को दुःख पाते हैं। तथा सख्त सिर दर्द, कमर, गुर्दे का दर्द होता हैं और जैसा कि मंगल के और चिह्नों में और विशेषकर स्त्री के सम्बन्ध में है, वह आन्तरिक दुःख से ग्रसित रहता है और प्राय: गहरे आपरेशन करवाने पड़ते हैं।