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भद्रबाहु संहिता |
प्रथम नियम याद करने के लिये--जीवन रेखा लम्बी स्पष्ट तथा और किसी प्रकार की टूट-फूट या निशान आदि कुछ भी नहीं होने चाहिए। ऐसी रेखा लम्बा जीवन, चैतन्यता बीमारी से छुटकारा तथा ढांचे की दृढ़ता की द्योतक हैं। प्रथम बात को ध्यान में रखते हुए कि यह पेट तथा चेतन अंगों से सम्बन्ध रखती हैं। यह पूर्ण निश्चित है कि यदि जीवन रेखा भली प्रकार से है तो पाचन-यन्त्र तथा पेट अच्छी स्वस्थ दशा में हैं। यदि वह छोटे-छोटे टुकड़े या जंजीर के समान हो तो मनुष्य निश्चय ही खराब स्वास्थ्य, कमजोर पेट तथा चैतन्यता की कमी रखता है। इस स्थान पर निम्नलिखित नियमों पर अधिक ध्यान देना चाहिये---वे नियम जो और कोई अन्य इस विषय की पुस्तक में नहीं होते और जो मैंने अपनी
और किसी अन्य कृति से नहीं लिखे हैं जैसे—यह जीवन रेखा हर दशा में हाथ पर शरीर या मनुष्य के तने को दिखाता हैं इसलिये टुकड़े, निशान, जंजीर या द्वीप शरीर के बहुत प्रभावित भाग को दर्शाती हैं।
आगे जाने से पहले यह बता देना आवश्यक है, कि हर एक रेखा दोहरा कार्य करती हैं। प्रथम कार्य तो मनुष्य की बीमारी को बतलाती हैं, तथा दूसरे कार्य में कब बीमारी बहुत तेज होगी यह बतलाती हैं। प्रकृति की आश्चर्यजनक कार्य को समझने के लिये मैंने इस रेखा को हिस्सों में बांट दिया (देखो चित्र ८) चित्र आठ में रेखा के हिस्से दिखाये गये हैं तथा उनकी प्रवृत्तियों अंगुलियों के नीचे के उभारों से बाँटी गई हैं यह विद्यार्थी को अनेक अर्थ तथा साथ में जन्म मास का प्रभाव जैसा कि “हाथ के उभार" के विषय में परिच्छेद में है, तथा उसको स्वास्थ्य बीमारी तथा जीवन के खतरे को जो कि अब तक नहीं पाये गये हैं, के सम्बन्ध में ठीक पूर्ण ज्ञान प्राप्त कराती हैं।
जीवन रेखा सबसे पहले इसकी किस्म देखनी चाहिए कुछ हाथों में यह चौड़ी तथा छिछली हैं, दूसरों में गहरी और सुन्दर इस रेखा की बनावट धोखे में डालने वाली है, यदि विद्यार्थी अपना ध्यान उसकी बनावट की ओर नहीं देता तो यह गलत रास्ते पर जा सकता है, चौड़ी या छिछली रेखा अक्सर मनुष्यों को गलत रास्ते पर सोचने