________________
भद्रबाहु संहिता
१५२
आयु रेखा मातमा सीप रेगा बीसं तीसं चत्ता पण्णासं सट्टि सत्तार असि।
उयं कटियाऊ पएसिणं जाव जाणिज्जा ॥२२॥ (पएसिणं जावकणडियाऊ) कनिष्ठिका से जो रेखा आरम्भ होकर प्रदेशिनी तक जावे उसे आयु रेखा कहते हैं। उसी के अनुसार (बीसं) बीस (तीसं) तीस (चत्ता) चालीस (पण्णासं) पचास (सट्टि) साठ (सत्तर्रि) सत्तर (असि) अस्सी (णउयं) नब्बे की आयु (जाणिज्जा) जानो।
भावार्थ-यदि आयु रेखा कनिष्ठिका से प्रारम्भ होकर प्रदेशिनी तक जाचे तो उसी के अनुसार क्रमश: आयु का ज्ञान कर लेना चाहिये। प्रथम कनिष्ठिका से लेकर इसके अन्त तक जाने वाली रेखा से बीस वर्ष की आयु समझो अनामिक से प्रारम्भ होकर इसके अन्त तक जाने वाली रेखा से चालीस वर्ष की आयु समझो। वहाँ से प्रारम्भ होकर इस अंगुलि के अन्त तक जाने वाल रेखा पचास वर्ष की आयु बताती है। मध्यमा के प्रारम्भ तक जाने वाली रेखा से साठ वर्ष की आयु
और अन्त तक जाने वाली रेखा सत्तर वर्ष की आयु होती है। और प्रदेशनी के प्रारम्भ में अस्सी वर्ष की आयु अन्त तक जावे तो नब्बे वर्ष की आयु समझो।। २२॥
भारतीय परम्परा के अनुसार इसी रेखा को आयु रेखा माना है। जो कनिष्ठा के नीचे से प्रारम्भ होकर प्रदेशनी तक जावे। और इसी आयु रेखा के अनुसार आयु का ज्ञान किया जाता है। एक परम्परा में एकैक अंगुलि के नीचे के भाग को पच्चीस वर्ष की आयु माना अथवा एक परम्परा के अनुसार बीस-बीस वर्ष की आयु मानी है। आगे और भी अन्य आचार्यों का इन रेखाओं के बारे में ऐसा अभिमत है। जो प्रथम बालभट्टजी का अभिमत कहते हैं।
ललाटे यस्य दृश्यन्ते पंच रेखा अनुत्तराः।
शतवर्षाणि निर्दिष्टं नारदस्य वचो यथा ।। २३॥ भावार्थ-जिस पुरुष के ललाट पर पाँच रेखा एक-दूसरे के बाद, दिखाई दें, उसको आयु, नारदमुनि के कथानुसार सौ वर्ष होनी चाहिये ॥ २३ ॥