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भद्रबाहु संहिता
भावार्थ यदि मनुष्य के हाथ की रेखा मणिबंध से प्रारंभ होकर प्रदेशिनी तक जावे तो समझो वह मनुष्य बहुत से भाई बंधुओं सहित होता है, और कुलवंश वृद्धिगत होता है।। 15॥
धन प्राप्ति रेखा व भाग्य रेखा मणिबंधाओ पयडा संपत्ता मल्झिमंगुलिं रेहा!
सा गुणइ धणसमिद्धं देसक्खायं तमायरिमं॥17॥ (रहा) रेखा (मणिबंधाओ पयडा) मणिबन्ध से प्रकट होकर (मज्झिमंगुलिं संयत्ता) मध्यमा अंगुलि तक जाती है तो (सा) वह गुण (गुणइ घणसमिद्ध) वह रेखा मनुष्य को धनवान बना देती है (देयक्खायं तमायरिम) तथा विश्व विख्यात आचार्य बन देती है।
भावार्थ-यदि मणिबन्ध से रेखा प्रकट होकर मध्यमांगलि तक जाती है, तो समझो वह पुरुष बहुत धन प्राप्त करता है, और वह ख्याति प्राप्त आचार्य बनता है॥1711
अक्खंडा अप्फुडिया अल्लवा आयया अछिण्णा य।
झक्का वि उड्ढरेहा सहस्सजणपोसिणी भणिया॥18॥ (इकावि उड्ढरेहा) अगर मनुष्य के हाथ में एक भी अर्द्ध रेखा (अक्खंडा अप्फुडिया) अखण्ड हो अर्थात् टूटी हुई न हो (अपल्लवा) एवं उसमें शाखाएं निकली हुई हो, (आयया अछिण्णाय) चौड़ी और छिन्न-भिन्न न हो तो (सहस्सजणपोसिणी भणिया) वह व्यक्ति हजार मनुष्यों का भरणपोषण करने वाला होता है।
भावार्थ-अगर मनुष्य के हाथ में एक भी अर्द्ध रेखा अखण्ड व टूटी हुई न हो शाखाओं से रहित हो, चौड़ी और छिन्न-भिन्न न हो तो वह मनुष्य हजार मनुष्यों का भरण पोषण करने वाला होता है। 18 ।।
विप्पाणं वेदकरी रज्जकरी खत्तिआण सा भणिया।
वेसाणं अत्थकरी सुक्खकरी सुद्दलोआणं॥19॥ (विप्पाणंवेदकरी) यही रेखा ब्राह्मणों को वेद का ज्ञान कराने वाली होती