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हस्त रेखा ज्ञान
रेखा हो तो (धणकणगरयणजुत्तो) उसको धन, सोने और रत्नों की प्राप्ति होती है (आहरणविविहभागी) आभरण भी उसको नाना प्रकार के प्राप्त होते है (पच्छा भदं च सो लहइ) पश्चात् वह आत्म कल्याण के मार्ग पर भी लग जाता है।
भावार्थ—मनुष्य के हाथों का जो मणिबंध है उसके ऊपर तीन रेखा हो तो ऐसे मनुष्य को धन, सोना व रली का अच्छा लाभ होता है, नाना प्रकार के आभरण भी प्राप्त करता है, फिर वह अपने आत्म कल्याण के मार्ग पर भी लग जाता है। अर्थात वह संसार के सुख को अच्छी तरह से भोगकर फिर वृद्धावस्था में अपना कल्याण करता है॥8॥
महुपिंगलहिं सुहिआ असिणधया हवंति स्ताहि।
सुहमाहिं मेहावी सुभगा य समत्त मूलाहिं॥9॥ (महपिंगलहि सुहिआ) यदि मणि बंध की रेखा मधु के समान पीली हो वा कत्थे के रंग के समान वर्ण हो तो वह व्यक्ति सुखी होता है (अविणहवयास्ताहिं हवंति) और अगर वही रेखा लाल वर्ण की हो तो अखंड व्रत को पालन करने वाला होता है (सुहमाहिं मेहावी) यदि यह रेखा सूक्ष्म हो तो मेधावी अर्थात् बुद्धिमान होता है (समत्तमूलार्हि सुभगा य) इन रेखाओं का मूल सम हो तो सुभग अर्थात् सौभाग्यशाली रूपवान व भाग्यवान होता है।
भावार्थ-यदि मणिबंध की रेखा मधु के समान पीली हो या कत्थे के रंग की हो तो वह मनुष्य सुखी होता है, और वह रेखा लाल वर्ण की हो तो उसका धारण किया हुआ व्रत कभी भंग नहीं होता है, अर्थात् व्रत भंगी नहीं होता है और यदि यह रेखा सम हो तो वह मनुष्य भाग्यवान, रूपवान और सौभाग्यशाली होता है।
इन रेखाओं के बारे में वराहमिहिर का ऐसा कहना है कि जिनका मणिबंध (कलाई) दृढ़ हो गठीला हो तो वह राजा होता है यदि मणिबंध की कलाई ढीली हो उस मनुष्य का हाथ कट जाता है, और वही अगर शब्द करने वाला मणि बंध हो तो वह व्यक्ति दरिद्री ही रहेगा। ऐसे पुरुष कभी भी धनवान नहीं बन सकते हैं।।9॥