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भद्रबाहु संहिता
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भावार्थ-यदि केतु सांयकाल में नक्षत्र चक्र में दिखाई पड़े तो समझो, महाअशुभ है। पीछे के क्षेत्रों का विनाश करता है॥१८३॥
जड़ ध्रुवमज्ने दीसइ केऊ सयलं विणासएपहवी।
सवणगणाणं अचलं चलणं च करेदि सत्ताणं॥१८४॥ (जइ ध्रुवमझे दीसइ केऊ) यदि केतु ध्रुव के अन्दर दिखाई दे तो (सयलं विणासए पुहवी) सम्पूर्ण पृथ्वी का नाश करता है। (सवण गणाणं अचलं) और अचल पदार्थों को (चलणं च करेदि सत्ताणं) चलायमान कर देता है।
भावार्थ—यदि केतु ध्रुव के अन्दर दिखाई पड़े तो सम्पूर्ण पृथ्वी का नाश करता है, और अचल पदार्थों को चलायमान कर देता है।। १८४ ॥
पुढवी सम्वविणासोणायब्वो जत्थदीसए के।
तम्हा तं पुण देसे परिहरियव्वं पयत्तेण ॥१८५॥ (जत्थदीसए केऊ) जहाँ पर केतु दिखाई देता है। वह (पुढवां सत्व विणासोणायव्वो) सारी पृथ्वी का नाश कर देता है (तम्हातंपुण देसे) इसलिये उस देश को (पयत्तेण) प्रयल से (परिहरियव्वां) छोड़ देना चाहिये।
भावार्थ-जहाँ पर केतु दिखाई पड़े तो उस देश का नाश हो जाता है। इसलिये उस जगह को शीघ्र प्रयत्न से छोड़ देना चाहिये। १८५॥
संवेण विकहियं तणुप्पायाणं तु लक्खणं थोवं।
इत्तोजआहिरितं तं पुण अण्णंतु जाणिज्जा॥१८६ ।। (संखेवेण विकाहियं तणुप्पायाणं तु) इस प्रकार संक्षेप से इसको मैंने कहा (थोवलक्खण) जिसको ज्यादा जानना है (इत्तो जंआहिरित्तं तं पुण) उसको पुन: दूसरी जगह से (अण्णंतु जाणिज्जा) जानना चाहिये।
भावार्थ-इस प्रकार के लक्षण मैंने संक्षेप में यहाँ पर कहे हैं, जिसको ज्यादा जानने कि इच्छा हो वह अन्य ग्रन्थों से जाने।। १८६॥