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भद्रबाहु संहिता
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भावार्थ-सफेद उल्का ब्राह्मणों का नाश करती है, लाल उल्का क्षत्रियों का नाश करती है, पीली उल्का वैश्यों का नाश करती है, काली उल्का शूद्रों का नाश करती है।।११९।।
चित्तलपंतिल्लाणं वाहिं मारि च ताण कोवेइ।
सामासम्मिपडंति सोहण उक्वाणवेराई॥१२०॥ (चित्तलयंतिल्लाणं) यदि चितकबरी उल्का दिखे तो (वाहिंमारिं च ताणकोवेइ) मारी रोग करती है (सामासम्मेिपडंतिसोहण) इधर-उधर से टकराती हुई उल्का (उक्काणवेराई) प्राण नाश करती है।
___ भावार्थ-यदि चितकबरी उल्का दिखे तो मारी रोग वा टकराती हुई उल्का प्राण नाश करती है।। ११
मज्झाणिएसंज्झाए वायग्गिभयं णिवेइपड़ती।
अह अण्णवेलदिट्ठा उक्का रणस्सणासयरा ॥१२१ ।। (मझणिएसंज्झाए) यदि उल्का मध्य रात्रि वा सन्ध्या समय में (वायग्गिभयंणिवेई पड़ती) दिखे तो अग्नि का भय निवेदन करना चाहिये (अहअण्णवेलदिवाउक्का) सूर्योदय की पहली उल्का (रणसस्सणासयरा) राजा का युद्ध में मरण करती है।
भावार्थ-मध्यरात्रि वा सन्ध्या समय में दिखने वाली उल्का अग्नि भय करती है, सूर्योदय की पहली उल्का राजा का युद्ध में मरण करती है।। १२१ ।।
पडमाणीणिद्दिट्ठा धुव सुवण्णस्स णासिणी उका।
अंगायेण जुत्ता अग्गीदाई णिवेदेई॥१२२॥ (पडमाणीणिद्दिट्ठा) यदि पड़ती हुई उल्का दिखाई पड़े तो (घुव सुवण्णस्सणासिणी उका) निश्चय से सुवर्ण का नाश करती है (अंगारायणजुत्ता) अंगारे के समान यदि उल्का गिरती हुई दिखे तो (अग्गीदाइंणिवेदेई) अग्नि दाह होगा, ऐसा निवेदन करना चाहिये।