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भद्रबाहु संहिता
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यदि सोमोणि सुदो उठुदिणुप्पादवज्जिदो संतो।
रपणेपुरा सहोहदि खेमशीवं तम्मिदेसम्मि॥११३॥
यदि (सोमोणिसुदोउदि) ये उठने वाले (णुप्पादवज्जिदोसंतो) इन्द्र धनुष के उत्पात साथ दिखे तो (तम्भिदेसम्मि) उस देश एवं (रण्णेपुरासहोहदि खेमशीव) नगर में क्षेम कुशल होता है।
___भावार्थ-यदि इन्द्र धनुष शान्त दिखे तो समझो उस देश में या नगर में क्षेमकुशल होता है।। ११३।।
अहउत्तमेहिणीया वमाणिया सोहणंति णायव्वं ।
अहमेल्लि नुत्तमापुण देसविणासं परिकर्हति ॥११४॥ (अहउत्तमेहिणीया व माणिया) इस प्रकार उत्तम पुरुष निमित्तों को (सोहणंतिणायव्वं) जानकर शोभा पाते हैं (अहमेल्लिनुत्तमापुण) और उन निमित्तों के फल को (देशविणासं परिकहंति) देश विनाश रूप कहते हैं।
भावार्थ-जो उत्तम पुरुष होते हैं वह निमित्तों को जानकर उसके फल को देश-विनाश रूप कहते हैं॥११४ ।।
जइबाला हिडता भिक्खं देहिंतिमुकुरावित्ता।
दुभिक्ख भयं होहइ तद्देसे पत्थि संदेहो।। ११५॥ (जइबालाहिडंताब्भिक्खं) जहाँ पर बालक चलते हुए भिक्षाको (देहिंति मुकुरावित्ता) दे ऐसा मुँह से उच्चारण करे तो (दुभिक्खभय होइइ) दुर्भिक्ष का भय होगा (तद्देसे) उस देश में, (पत्थिसंदेहो) इसमें कोई सन्देह नहीं है।
भावार्थ-जहाँ पर बालक चलते-चलते भिक्षा दो ऐसा कहे तो उस देश में निश्चित दुर्भिक्ष पड़ेगा ।। ११५॥
उल्का वर्णन पुव्वेउत्तरमुण्णानुक्का याजत्थ दीसइथपड़ा। तत्थविणासो होहड़ गामे णयरे णसंदेहो ॥११६ ।।
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