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निमित्त शास्त्रम्:
छत्तस्सपुण्णो होणरवारण
भावार्थ - जिस देश में प्रतिमा चलने या स्थिर प्रतिमा भंग हो जाय, तो उसके फल को अब मैं कहता हूँ ॥ ७१ ॥
मंगेण ।
भंगोणरवड़ भंगोरहस्स छडेमासे पुरविणासो ॥ ७२ ॥
(छत्तस्सपुण्णो भंगो णरवइ भंगो) छत्र भंग होने पर, राजा भंग हो जाता है एवं (रहस्स भंगेण रथ के भंग होने पर (होहइणरवइमरण) राजा का मरण होता है । (छडेमासेपुरविणासो) और छह महीने में नगर का नाश होता है।
भावार्थ छत्र के भंग होने पर राजा भंग होता है, रथ के भंग होने पर राजा का मरण होता है, और छह महीने में उस नगर का विनाश होता है ॥ ७२ ॥ मरणांता ।
मासे ॥ ७३ ॥
भामंडलस्सभंगे णरवरपीडाय होहइ तइए मासे अहवापुण
पंचमे
(भामंडलस्सभंगे) आभा मण्डल के भंग होने पर ( णरवरपीडाय मरणांत ) राजा को मरण के समान पीड़ा होगी। एवं ( होहइ तइए मासे) तीसरे मास में ( अहवापुणपंचमें मासे) अथवा पाँचवें महीने में उपर्युक्त फल होगा।
भावार्थ- - आभा मण्डल के भंग होने पर तीसरे महीने में या पाँचवें महीने में राजा को मरण के समान पीड़ा होगी । ७३ ॥
हत्थत्रपुणो भंगे कुमार मरणं च तइए पायस्पुणो भंगे जनपीडासत्तमे
मासेण । मासे ॥ ७४ ॥
( पुणो हत्यत्तभंगे ) पुनः अगर प्रतिमा का हाथ भंग हो जाय तो ( तइएमासेण कुमार मरणं च ) तीसरे महीने में कुमार का मरण अवश्य होगा और (पायस्सपुणो भंगे) पाँव के भंग होने पर (सत्तमे मासे जनपीडा ) सातवें महीने में प्रजा के लोगों को पीड़ा होगी।
भावार्थ — अगर प्रतिमा का हाथ भंग हो जाय तो तीसरे महीने में का मरण होगा, और पाँव के भंग होने पर लोगों को पीड़ा होगी ॥ ७४ ॥
राजकुमार