________________
८२०
भद्रबाहु संहिता
भावार्थ- नवीन वस्त्र के देवता भाग में यदि कंक, पक्षी, मेढ़क, कबूतर, कौआ, मांसभक्षी, गिद्ध, गधा, ऊँट, सर्प के आकार के छेद पड़े तो वस्त्र के मालिक को मरण के समान भय उत्पन्न होता है ॥ १९३ ।।
छत्रध्वजस्वस्तिक वर्द्धमान श्रीवृक्षकुम्भाम्बुज तोरणाद्याः ।
छेदाकृति नैऋतभागगापि पुसां विधत्ते न चिरेण लक्ष्मीम् ।। १९४ ।। यदि नवीन वस्त्र के (ऋतु भागगापि) नैर्ऋत्य भाग में (छत्रध्वजस्वास्तिक वर्द्धमान) छत्राकार, ध्वजाकार, साथी या वर्द्धमान (श्रीवृक्षकुम्भाम्बुज तोरणाद्याः ) श्रीवृक्ष, कुम्भ, कमल, तोरणादि के ( छेदाकृति ) आकार का छेद पड़े तो ( पुसां) पुरुष को (विधतेन चिरेण लक्ष्मीम् ) स्थिर लक्ष्मी प्राप्त नहीं होती है।
भावार्थ -- यदि नवीन वस्त्र के नैर्ऋत्य कोण में छत्र, ध्वज, साथी या वर्द्धमान, श्रीवृक्ष, कुम्भ, कमल, तोरणादिक के आकारका छेद पड़ जाय तो उस पुरुषको स्थिर लक्ष्मी प्राप्त नहीं होती है ।। १९४ ॥
भोक्तुं नवाम्बरं शस्त मृक्षेऽपि गुण विवाहे राजसन्माने प्रतिष्ठा मुनि
वर्जिते । दर्शने ।। ९९५ ।।
( विवाहे राजसन्माने ) विवाह में राजा सन्मान के समय में ( प्रतिष्ठा मुनि दर्शने) प्रतिष्ठादि क्रियाओं में मुनि दर्शन के समय में (मृक्षेऽपिगुण वर्जिते ) गुण वर्जित नक्षत्र होने पर भी ( नवाम्बरंशस्त भोक्तुं ) नये वस्त्रोंको धारण कर लेना चाहिये । भावार्थ -- विवाह के समय में राज्य सम्मान के समय में, पंचकल्याणक महोत्सवों में व मुनियोंके दर्शन के समय में नक्षत्र खराब होने पर भी नये वस्त्रों का उपयोग कर लेना चाहिये, इसमें कोई दोष नहीं है ।। १९५ ॥
विशेष—इस परिशिष्टाध्याय में धर्मात्मा के समाधिमरणोत्व के लिये शरीर के अरिष्टों का वर्णन किया है। निमित्तों के कारण भूत आचार्य श्री ने पुलिन्दिनी देवी का स्मरण किया है और समस्त अष्टांग निमित्तो का वर्णन व उपयोग आयुर्ज्ञान के लिये है ऐसा कहा है।
पहले शरीर के अन्दर कितने रोग होते हैं सो आचार्य श्री ने बताया कि