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भद्रबाहुसंहिता
अवस्था में उत्तेजित होकर मानसिक जगत् में जागरूक हो जाती । अतः स्वप्न में भावी घटनाओं की सूचना के साथ हमारी छिपी हुई प्रवृत्तियों का ही दर्शन होता है। एक दूसरे पश्चिमीय दार्शनिक ने मनोवैज्ञानिक कारणों की खोज करते हुए बताया है कि स्वप्न में मानसिक जगत् के साथ बाह्य जगत् का सम्बन्ध रहता है, इसलिए हमें भविष्य में घटने वाली घटनाओं की सूचना स्वप्न की प्रवृत्तियों से मिलती है। (tr. D. Whitbcy) ने मनोवैज्ञानिक ढंग से स्वप्न के कारणों की खोज करते हुए लिखा है कि गर्मी के कारण हृदय की जो क्रियाएँ जागृत अवस्था में सुषुप्त रहती हैं, वे ही स्वप्नावस्था में उत्तेजित होकर सामने आ जाती हैं। जागृत अवस्था में कार्य-संलग्नता के कारण जिन विचारों की ओर हमारा ध्यान नहीं जाता है, निद्रित अवस्था में वे हो विचार स्वप्न में सामने आते हैं। विगोरियन सिद्धान्त में माना गया है शरीर आत्मा की कब्र है। निद्रित अवस्था में आत्मा स्वतन्त्र रूप से असल जीवन की ओर प्रवृन होता है और अनन्त जीवन की घटनाओं को ला उपस्थित करता है। अतः स्वप्न का सम्बन्ध भविष्यकाल के साथ भी है। बेबीलोनियन ( Babylonian ) कहते है कि स्वप्प में देव और देवियां आती है तथा स्वप्न में हमें उनके द्वारा भावी जीवन की सूचनाएं मिलती है, अतः स्वप्न की बात। द्वारा भविष्यत् कालीन घटनाएं सूत्रित की जाती है । निलजेम्स (Giljames) नामक महाकाव्य में लिखा है कि वीरों को रात में स्वप्न द्वारा उनके भविष्य की सूचना दी जाती श्री । स्वप्न का सम्बन्ध देवी-देवताओं से है, मनुष्यों से नहीं । देवी-देवता स्वभावतः व्यक्ति में प्रसन्न होकर उसके शुभाशुभ की सूचना दी है।
उपयुक्त विचारधाराओं का गगन्वय करने से यह स्पष्ट है कि स्वप्न केवल अवदगित इच्छाओं का प्रकाशन नही कि भावी शुभाशुभ का युवक है | इ स्वप्न का सम्बन्ध भविष्य में घटने वाला से कुछ भी नहीं स्थापित किया है, पर वास्तविकता दूर है। स्वप्न भविष्य असूनक है। क्योंकि गुषुप्तावस्था में भी आत्मा तो जागृत ही रहती है, केवल इन्द्रियां और मन की शक्तियां विश्राम करने के लिए सुगुप्त सी हो जाती है। अतः मान की मात्रा की उज्ज्वलता से निद्रित अवस्था में जो कुछ देखा है, उसका सम्बन्ध हमारे भूत, वर्तमान और भावी जीवन से है। इसी कारण बचावों के स्वप्न को भूत, भविष्य और वर्तमान का सुनक बताया है ।
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मुहूर्त -- मांगलिक कार्यों के लिए शुभ समय का विचार करना मुहते है | यतः समय का प्रभाव प्रत्येक नेतन सभी प्रकार के पदार्थों पर पड़ता है । अन: गर्भाधानादि पोल संसार एवं प्रतिष्ठा, गृठामा प्रवेश वाला प्रभृति शुभ कार्यों के लिए गुर्त का आश्रय लेना परमावश्यक है।
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