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प्रथमोऽध्यायः
निर्घात, पवन और घेरा दिव्य उत्पात हैं, गन्धर्वनगर, इन्द्रधनुष आदि अन्तरिक्ष उत्पात हैं और चर एवं स्थिर आदि पदार्थों से उतान्न हुए उत्पात भौम कहे जाते हैं।
ग्रहचार—सूर्य, चन्द्र, भौम, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु इन ग्रहों के गमन द्वारा शुभाशुभ फल अवगत करना ग्रहवार कहलाता है। समस्त नक्षत्रों और राशियों में ग्रहों की उदय, अस्त, बक्री, मार्गी इत्यादि अवस्थाओं द्वारा फल का निरूपण करना ग्रहवार है। ___ग्राद्ध-मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि इन ग्रहों में से किन्हीं दो ग्रहों की अधोपरि स्थिति होने से किरणे परस्पर में स्पर्श करें तो उसे ग्रहयुद्ध कहते हैं । बृहत्संहिता के अनुसार अधोपरि अपनी-अपनी कक्षा में अवस्थित ग्रहों में अतिदूरत्वनिबन्धन देखने के विष टोन्में जो समता होती है, उसे ही ग्रहमुद्ध कहत हैं । ग्रहयुति और ग्रह युद्ध में पर्याप्त अन्ता है। ग्रहयुति में मंगल, बुध, गुरु, शुक्र
और शनि इन पाँच ग्रहों में से कोई भी ग्रह जब सूर्य या चन्द्र गाथ समय में स्थित होते हैं, तो ग्रहयुति कहलाती है और जब मंगलादि पानी ग्रह भापम में हो समसूत्र में स्थित हो अहह हार ग्रहयुद्ध के चार भेद हैं—उल्लेख, भेद, अंशु विमर्द और अपसव्य। छायामाय से ग्रहों के स्पर्श हो जाने को उल्लेख; दोनों ग्रहों का परिमाण यदि योगफल के आधे से ग्रहद्वय का अन्तर अधिक हो तो उस युद्ध को भेद; दो ग्रहों की किरणों का संघट्ट होना अंशविमर्द एवं दोनों ग्रहों का अन्तर साठ कला से न्यून हो तो उसे अपसव्य कहते हैं।
वातिक या अर्धकाण्ड - ग्रहों के रबरा, गगन, अवस्था राय विभिन्न प्रकार के बाह्य निमित्तों द्वारा वस्तुओं की नजी-मन्दी अवगत गरमा अर्घकाण्ड है।
स्वप्न चिन्ताधास दिन और रात दोनों में गाय कप में चलती है। जानतावस्था की चिन्ताधारा पर हमारा नियन्त्रण रहता है, पर शुग्तावस्था नी चिन्ताधारा पर हमारा नियन्त्रण नहीं रहता है, इसीलिप बामन भी नाना अलंका:मयी प्रतिरूपों में दिखलाई पड़ते हैं। स्वप्न में दर्शन और प्रत्यभिज्ञानुभति के अतिरिक्त शेषानुभूतियों का अभाव होने पर भी मुग्न, युः, श्रोध, आनन्द, भय, ईर्ष्या आदि सभी प्रकार के मनोभाय पाये जाते है । इन भावा क पाये जाने का प्रधान कारण हमारी अज्ञात इच्छा है। स्वप्न द्वारा गाविण्य में घटित होने वाली शुभाशुभ घटनाओं की सुचना अलंकृत भाषा में मिलती। अतः उस अलंथात भापा का विश्लेषण करना ही स्वप्न-विज्ञान का कार्य है। अरसा (Aristotle) ने स्वप्न के कारणों का विश्लपण चारत : लिपिजामा वा गं जिन प्रत्तियों की ओर व्यक्ति का ध्यान नहीं जाता, ने ही शवलिया अनिमित