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भद्रबाहुसहिता दिनानि तावन्मात्राणि मासान् वा वत्सराणि वा!
स्वस्थितो जीवति प्राणी वीक्षितं ज्ञानदृष्टिभिः .1177॥ प्रात:काल लाक्षा प्रश्न के समान स्नानादि क्रियानो मा निवृत्त होकर उपर्युक्त मन्य से मन्त्रित हो सो बार मन्त्रित गोरोचन से हाथों का प्रश्नालन कर दोनों हाथों का दर्शन करे। उक्त क्रिया करने वाला रोगी व्यक्ति उतने ही दिन, मास और वर्ष तक जीवित रहता है, जितने ऋणविन्दु उसके हाथ के पवों में लगे रहते हैं, इस प्रकार का कथन ज्ञानियों का है ।।174 1/2-177॥
विशेष अलक्त प्रश्न की विधि यह है कि किसी चौरस भूमि को एक वर्ष की गाय के गोबर से लीपवार उस स्थान पर 'ॐ हीं अई णमो अरिहन्ताण ह्रीं अवतर अवत र स्वाहा' इम मन्त्र को 108 बार जाना चाहिए। फिर काँस के वर्तन में अलस्त को भरकर मी बार मन्त्र में मन्धित कर उका भूमि पर उप बर्तन को र देना चाहिए, पश्चात् गेगी के हाथों को गोभून और दूध से धोत्र र दोनों हाथों गर भन्न पहल हु, दिन, मारा और वर्ष की कल्पना नारनी चाहिए । अनन्तर पुनः सी बार उक्त मन्त्र को "डकर या अलपत में होगी के हाथ धोने चाहिए । इरा क्रिया के पश्चात् रोगी का हाथ धोना चाहिए। समयः हाथों के सन्ध्रि स्थानों में जितने बिन्दु काले रंग के दिधलायी पड़ें, उतने ही दिन, मास और वर्ष की आयु समझनी चाहिए ।
मोगेनन प्रश्न की विधि यह है कि जना प्रश्न गाममा एक वर्ण की गाय के गोबर में भूमि तो लीपकर उपयुक्त मन्त्र से 108 यार मन्त्रित कर कांग के बर्तन में गोरोचन को गोबार मन्त्र से मनात बारना चाहिए । पश्चात् रोगी के हाथ गोमूत्र और दुध धोकर मा पाईने हुए हाथी पर वर्ष, मास और दिन की कल्पना करनी चाहिए । पुनः मी बार मन्त्रित गांगेनन ने रोमी के हाथ ध्रुला र उन हाथों में रोगी या मरण-समय की परीक्षा करनी चाहिए । रोगी के सन्धि स्थानों में गितने काले रंग के बिन्दु दिनलायी गई, उतने ही संख्यक दिन, भास और वाई में उराशी मृत्यु समानी चाहिए।
रोचनाकुंकुमक्षिानामिकारक्तसंयुता। षोडशाक्षर लियेत्पद्म तबहिश्चैव तत्समम् ।। 1787t षोडशाक्षरतो बाह्य मुलबीजं दले दले। प्रथमे च दले वर्षान्मासांश्चैव बहिदले ।।17911 दिवसान षोडशीरेव साध्यनामसुकणिक । सप्ताहं पूजयेच्चकं तदा तं च निरीक्षयेत् ।। 80॥