________________
परिशिष्टाध्याय:
465
बिना किसी निमित्त वे मोठ, नख, दन्त और जिह्वा यदि काली हो जाय तथा षड् रस का अनुभव न हो तो उसकी आयु एवः महीना शेष होती है 112 511
ललाटे तिलकं यस्य विद्यमानं न दृश्यते।
जिह्वा यस्यातिकृष्णत्वं मासमेकं स जीवति ॥26॥ जिसके मस्तक पर लगा हुआ तिलक किसी को दिखलाई न पड़े तथा जिह्वा अत्यन्त काली हो जाय तो उसकी आयु एक महीने की होती है ॥26॥
धतिमदनविनाशो निद्रानाशोऽपि यस्य जायत ।
भवति निरन्तरं निद्रा मासचतुष्कन्तु तस्याय: ।127॥ धैर्य, कामशक्ति और निद्रा के नाश होने के चार महीने की आयु शेष समझनी चाहिए । अधिक निद्रा का आना, दिन-रात सोते रहना भी चार मास की आयु का मुचा है ॥27॥
इत्यवोचरिष्टानि पिण्डस्थानि समासतः ।
इतः परं प्रवक्ष्यामि पदार्थस्थान्यनक्रमात् ।।28।। इस प्रकार विगडस्थ अरिष्टों का वर्णन किया । अब पदार्थ अरिष्टों का वर्णन करता हूँ।1280
चन्द्रसूर्यप्रदीपादीन् विपरीतेन पश्यति ।
पदार्थस्थरिष्टं तत्कथयन्ति मनीषिणः ॥29॥ चन्द्रमा, सूर्य, दीपक या अन्य किसी वस्तु का विपरीत रूप से देखना पदस्थ या पदार्थ स्थित अरिष्ट विद्वानों ने कहा है ।।29॥
स्नात्वा देहमलंकृत्य गन्धमाल्यादिभूषणः ।
शुभ्र स्ततो जिनं पूज्य चेदं मन्वं पठेत् सुधी: 1300 ॐ ह्रीं णमो अरहताणं कमले-काले-विमल बिमले उदरदवदेवी इटि मिटि पुलिन्दिनी स्वाहा ।
एकविंशतिबेलाभिः पठित्वा मन्त्रमुत्तमम् ।
गुरूपदेशमाश्रित्य ततोऽरिष्टं निरीक्षयेत् ।।3।।। पदस्थ अरिष्ट यो जानने की विधि का निरूपण करते हुए बताया गया है कि स्नान कर, श्वेत वस्त्र धारण कर, सुगन्धित द्रव्य तथा आभूषणों में अपने को सजाकर एवं जिनेन्द्र भगवान की पूजा बार "ॐहीं णमो अरिहंताणं कमल-कमले विमले-बिमले उदरदव देवि इदि भिटि पुलिन्दिनी स्वाहा" इस मंत्र का इक्कीस बार उच्चारण कर गुरु-उपदेश के अनुसार अरिष्टों का निरीक्षण करें ॥30-3 ।।।