________________
464
भद्रबाहुसंहिता
पाणिपादोपरि क्षिप्तं तोयं शीघ्र विशुष्यति । दिनत्रयं च तस्यायुः कथितं पूर्वसूरिभिः ॥19
हाथ-पैरों पर दाना गया न दिर की आयु नाहिए, ऐसा पूर्वाचार्यों ने कहा है || 19 निर्विश्रामो मुखाच्छ्वासो मुखाद्रक्तं पतेद्यदा । यद्दृष्टि स्तब्धा निष्यन्दा वर्ण चैतन्यहीनता ॥201
ही सूत्र आय तो उसकी तीन दिन
जिसके
सुख से अधिक स्वागत हो, मुख से रक्त गिरता हो, दृष्टि स्तब्ध और निरपन्न हो नया सुखविव और चैतन्यहीन दिखलाई पड़े तो उसकी निकट मृत्यु रामझनी चाहिए || 2011
free ग्रीवा न यस्यास्ति सोच्छ्वासो हृदि रुध्यते । नासावदन गुह्यभ्यः शीतलः पवनो महेत् ॥21॥
जिसकी गर्दन स्थिर न रहे, ही हो जाय या वास हृदय में रुक जाय तथा सुखाक और वेन्दिय में शीतल वा निकलने लगे तो शीघ्र मरण होना
है 2 ||
न जानाति निजं कार्यं पाणिपादौ च पीडितौ । प्रत्येकमेभिस्त्वरिष्टस्तस्य मृत्युर्भवेल्लघुः || 20
हाथ, पैर आदि के पीड़ित करने पर भी जिसे पीड़ा का अनुभव न हो उसको शीघ्र मृत्यु होती है 1122
स्थलो याति कृशत्वं कुशोऽप्यकस्माच्च जायते स्थूलः । स्थगस्यगतिर्यस्य कायः कृतशीर्षहस्तो निरन्तरं शेते 112341
अकस्मात् स्थूल शरीर का कृश हो जाना तथा कृष्ण शरीर का स्थूल हो जाना और शारीर का काँपने लगता एवं अपने सिर पर हाथ रखकर निरन्तर सोना एक गाय की आयु का द्योतक है || 2311
ग्रीवोपरि करबन्ध्यां गच्छत्यङ्गुलीभिद् दबन्धं च । क्रमेणोद्यमहीनस्तस्याथुर्मासपर्यन्तम् ||24||
गाढ़ बन्धन करने के लिए जिसको अंगुलियां गले में डाली जाये पर अंगुलियों रेट दुइ बन्धन न हो सके तथा धीरे-धीरे जिसकी कार्य-क्षमता घटती जाये तो ऐसे व्यक्ति की आयु एक महीना अवशेष रहती है ।12411
अधरनखदशनरसनाः कृष्णा भवन्ति विना निमित्तेन । षड्रसभेदमवेताः तस्यायुर्मासपरिमाणम् ॥25॥