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भद्रबाहुसंहिता पदि ग्रहमुक्त चन्द्रमा उतर दिशा में आरोहण करे या उत्तर का स्पर्श करे तो पांच कुम्भ प्रमाण जल की वर्षा होती है अर्थात् खूब जल बरसता है 12.41
राहुः केतुः शशी शुको भौमश्चोत्तरतो यदा। सेवन्ते चोत्तरं द्वारं यान्त्यस्तं वा कदाचन ॥25॥ निवृत्ति चापि कुर्वन्ति भय देशेषु' सर्वशः । बहुतोयान् समान् विन्द्यान् महाशालींश्च यापयेत् ॥26॥ कार्पासास्तिल-माधाश्च सपिश्चात्र प्रियं तथा ।
आशु धान्यानि वर्धन्ते योगक्षेमं च हीयते ॥27॥ जब राहु, केतु, चन्द्रमा, शुक्र और मंगल उतर में उत्तर द्वार का सेवन करें अथवा अस्त को प्राप्त हों अथवा स्त्री हो तो सभी देशों में भय होता है । अधिक जल की वर्षा होती है और चावल भी खूब बाया जाता है । कपास, तिल, उड़द, घी महंगा होता है । वपां की अधिकता के कारण बावड़ी-तालाबों का जल योन ही बढ़ता है, जिससे योग-क्षेम-गुजर-बसर में कमी आती है 125-27।।
चन्द्रस्य दक्षिणे पार्वे भार्गवो वा विशेषतः । उत्तरांस्तारकान् प्राप्य तदा विन्द्यादिदं फलम् ।।28।। महाधान्यानि पुष्पाणि हीयन्ते चामरस्तदा ।
कार्पास-तिल-माषाश्च सपिश्चवार्घते तथा ॥29॥ यदि शुक्र चन्द्रमा के दक्षिण भाग में हो अथवा विशेष रूप से उत्तर के नक्षत्रों को प्राप्त हुआ हो तो महाधान्य गह, जौ, धान, चना आदि और पुष्पा-केसर, लवंगादि की कमी होती है अर्थात् उक्त पदार्थ नहेंगे होते हैं । कपास, तिल, उड़द और धी की धद्धि होती है, अत: ये पदार्थ मस्त होते हैं ।।28-2911
चित्राया दक्षिणं पाश्र्व शिखरी नाम तारका।
तयेन्दुदि दृश्येत तदा बीजं न वापयेत् ॥30॥ निभा नक्षत्र के दक्षिण पार्व में गिखरी नाम की तारिका है। यदि चन्द्रमा का उदय इग तालिका में दिखलाई पड़े तो बीज नहीं बोना चाहिए 131
गवास्त्रेण हिरण्येन सुवर्ण-मणि-मौक्तिकः ।
महिध्यजादिभिवस्र्धान्यं क्रीत्वा निवापयेत् ॥३॥ चन्द्रमा की उक्त स्थिति में गाय, अस्त्र, चाँदी, सोना, मणि, मुक्ता, महिष
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ग । 2. वा
. 3. 4, शुभाया मु. ।