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पंचविंशतितमोऽध्यायः
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हों तो धान्य का भाव पाँच द्रोण प्रमाण होता है । पश्चिम में दश आढक भोर दक्षिण में छः आढक प्रमाण होता है ।।। 5-1711
उत्तरेण तु रोहिण्यां चतुष्कं कुम्भ मुच्यते।
दशकं प्रसंगतो विन्यात् दक्षिणेन च तुर्दशम् ॥18॥ यदि उत्तर में रोहिणी हो तो चतुष्क कुम्भ कहा जाता है । इससे दश आढक और दक्षिण में होने से चौदह आढक प्रमाण गाली का भाव कहा गया है ॥18॥
नक्षतस्य यदा गच्छेद दक्षिणं शुक्र-चन्द्रमाः।
सुवर्ण रजतं रत्नं कल्याणं प्रियतां मिथ: 1119॥ जब शुक और चन्द्रमा कृतिका विद्ध रोहिणी नक्षत्र के दक्षिण में जाथें तब स्वर्ण, चाँदी, रन और धान्य महँग होते हैं ।। 19॥
धान्यं यत्र प्रियं विन्द्याद्गावो नात्यर्थदोहिनः ॥
उत्तरेण यदा यान्ति नैतानि चिनुयात् तदा ॥20॥ जब उक्त ग्रह कृनिका विश रोहिणी नक्षत्र के उत्तर में जायें तो धान्य महंगा होता है, गायें दोहने के लिए प्राप्त नहीं होती हैं अर्थात् महेंगी हो जाती हैं।।20।।
उत्तरेण तु पुष्यस्य यदा पुष्यति चन्द्रमाः । भौमस्य दक्षिणे पावें मघासु यदि तिष्ठति ॥21॥ मालदा माल वैदेहा यौधेयाः संज्ञनायकाः ।
सुवर्ण रजतं वस्त्रं मणिम क्ता तथा प्रियम् ॥22॥ जब चन्द्रमा उत्तर में पुष्य नक्षत्र का भोग करता है तथा मधा में रहकर मंगल का दक्षिण में भोग करता है, तब काली मिर्च, नमक, मोना, चांदी, वस्त्र, मणि, मुरता एवं मशाले के पदार्थ गहग होते हैं ।।21-22॥
चन्द्रः शको गुरुभौंमो मघानां यदि दक्षिण।
वस्त्रं च द्रोणमेघं च निदिशेन्नात्र संशयः ॥23।। चन्द्र, शुत्रा, गुरु और मंगल अदि मघा के दक्षिण में हो तो वस्त्र महंग होते है और मेघ द्रोण प्रमाण वर्षा करल है, इसमें मन्देह नहीं है ॥2311
आरहेद बालिवद्वापि' चन्द्रश्चैव यथोत्तरम् । ग्रहैयु क्तस्तु (वर्षति तदा कुम्भं तु पञ्चकम् ॥24॥
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लश्च दापी ज भ चन
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