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________________ चतुर्विशतितमोऽध्याय: 403 नोलाद्यास्तु यदा' वर्णा उत्तरा उत्तरं पुनः । नागराणां विजानीयात् निम्रन्थे ग्रहसंयुगे ॥27॥ ग्रहो ग्रहं यदा हन्यात प्रविशेद् वा भयं तदा। दक्षिणः सर्वभूतानामुत्तरोऽण्डजपक्षिणाम् ।।28। ग्रहयुद्ध में यदि नीलादि वर्ण वान्ने ग्रह उत्तर दिशा में युद्ध करें तो नागरिकों का अधिक होता है, गोशा निग्य आनाया का वचन है। यदि दक्षिण से ग्रह ग्रह का पात करे अथवा ग्रह ग्रह में प्रवेश करे तो समस्त प्राणी, अण्डज और पक्षियों को अहितक' होता है 1127-28।। ग्रही गुरु-बुधौ विन्द्यादुत्तरद्वारमाश्रितो। शुक्र-सूर्यों तथा पूर्वा राहु-भौमौ च दक्षिणाम् ॥29॥ अपरां चन्द्र-सूर्यौ तु मध्ये केतुमसंशयम् । क्षेमंकरो ध्रुवागां च यायिनां च भयंकरः ॥3011 उनर द्वार में स्थित होकर गरु और बुध युद्ध करें. पूर्व में स्थित होकर शुक्र और सूर्य, दक्षिण में स्थित होकर राहु और मंगला, पश्चिम में चन्द्र और सूर्य एवं मध्य में गनु युद्ध करें तो निवागियों के लिए कल्याणप्रद और. यायियों के लिए भयंकर होता है 129-3011 अहश्च पूर्वसन्ध्या च स्थावरप्रतिपुद्गलाः । रात्रिश्चापरसन्ध्या च यायिनो प्रतिपुद्गलाः ॥31॥ दिन और पूर्व सन्ध्या स्थाविरा-- निवासियों के लिए प्रतिपुद्गल तथा रात्रि और अपर सन्ध्या याथियों के लिए प्रनिपुद्गल हैं ।।3।। रोहिणी च ग्रहो हन्यात द्वौ वाऽथ बह दोऽपि वा। अपग्रहं तदा विन्द्याद् भय वाऽपि न संशय: ।।32॥ यदि मोहिणी नक्षत्र को एक ग्रह, दो ग्रह या बढ़त ग्रह हनन करें-घात करें तो अपग्रह होता है और भय एवं आतंक भी ध्याप्त रहता है, इसमें सन्देह नहीं है ।।3211 शुक्र: शंखनिकाशः स्यादीषत्पीतो बृहस्पतिः । प्रवालसदृशो भौमो बुधस्त्वरुणसन्निभः ॥33॥ ।.ये अर्गा म ।
SR No.090073
Book TitleBhadrabahu Sanhita Part 1
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages607
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size13 MB
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