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भद्रबाहुसंहिता
ग्रहयुद्ध में यदि पीतवर्ण का ग्रह पीतवर्ण के ग्रह का पात करे तो वैश्य और नागरिकों में आपस में मतभेद होता है ।। 2011
कृष्णः कृष्णं यदा हन्यात् ग्रहं ग्रहसमागमे ।
शद्राणां नागराणाञ्च मिथो भेदं तदादिशेत् ॥2॥ ग्रहयुद्ध में कृष्णवर्ण का ग्रह कृष्णवर्ण के ग्रह का घात करे तो शुद्र और नागरिसों में परस्पर मतभेद होता है ॥2141
श्वेतो नीलश्च पीतश्च कपिलः पद्मलोहितः।
विपद्यते यदा वर्णो नागराणां तदा भनम् ॥22।। श्वेत, नील, गीत, कपिल और पद्म-लोहित वर्ण के ग्रह गय युद्ध करते हैं तो नागरिकों को भग होता है ॥22॥
श्वेतो वात्र यदा पाण्डुग्रह सम्पद्यते स्वयम् ।
यापिनां विजयं ब्रूयाद् भद्रबाहुवचो यथा ॥23॥ श्वेत वर्ग का ग्रह जब पाण्डुवर्ण के ग्रह के साथ युद्ध करता है, तब यायियों की विजय होती है, गभा भद्रबाहु स्वामी का वाचन है ।। 23।।
कृष्णो नीलस्तथा श्यामः कापोतो भस्मसन्निभः ।
विपद्यते यदा वर्णो न तदा धायिनो भयम् ॥24॥ कृष्ण, नील, ग्याम, कापोत और भस्मक मुल्य आभा वाला ग्रह जब युद्ध करता है तब यात्रियों को भय नहीं होता है ।। 24।।
एवं शिष्टेषु वर्णषु नागरेषु विचारतः ।
उत्तरमुत्तरा वर्णा यायिनामपि निदिशेत् ।।25।। अविशिष्ट अर्गा के नागरिक ग्रहां में विचार करने उत्तर वर्ण के ग्रह यायियों की नर विजय प्रकट करते है॥25॥
रक्तो वा यदि वा नीलो ग्रहः सम्पद्यते स्वयम्।
नागराणां तदा विन्द्यात् जयं वर्णमुपस्थितम् ॥26॥ रक्त या नोन ग्रह जब स्वयं विपनि को प्राप्त हो-युद्ध करे तो नागरिकों की विजय होती है 11260
1. अनयं पारागिन कर || दन् मu |