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त्रयोविंशतितमोऽध्यायः
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पीड़ित होते हैं 1152-531
एवं च जायते सर्व करोति विकृति यदा ।
तदा प्रजा विनश्यन्ति भिक्षण भयेन च ।।54॥ इस प्रकार चन्द्रमा के विकृत होने से दुर्भिक्ष और भय द्वारा प्रजा का विनाश होता है ।।54।।
अर्धमासं यदा चन्द्र ग्रहा यान्ति विदक्षिणम् ।
तदा चन्द्रो जयं कुर्याम्नागरस्य महीपते: ॥5॥ जब चन्द्रमा आधे महीने -पन्द्रह दिन का हो और उस समय अन्य ग्रह दक्षिण की और गमन करे तो चन्द्रमा नागरिव और राजा को विजय देता है ।। 55।।
होयमानं यदा चन्द्र ग्रहा: कुर्वन्ति वामतः ।
तदा विजयमाख्यान्ति नागरस्य महीपतेः ।। 56।। जब चन्द्रमा क्षीण हो रहा हा - कृष्ण पक्ष में ग्रह चन्द्रमा को बायों और करत हो तो नागरिक और राजा की विजय होती है ।।56।।
गति-मार्गाकृति-वर्णमण्डलायपि वीथयः ।
चारं नक्षत्रचारांश्च ग्रहाणां शुक्रवद् विदुः ।।57।। ग्रहों की गति, मार्ग, आकृति, वर्ण, अपन, वीथि, चार और नक्षत्र चार आदि शुत्र के समान समझना चाहिए ।। 57।।
चन्द्रस्य चारं चरतोऽन्तरिक्ष सुचारदुश्चार समं प्रचारम् ।
चर्यायुत: खचरसुप्रणीतं यो बेद भिक्षुः स चरेन्नपाणाम् ।।58।। चन्द्रमा क. आनाग में विचरण करने पर मुन्नार और दुश्मार दोनों होते हैं । जो भिक्षु प्रसन्नतायुक्त चन्द्रमा की चयां वो जानता है, वह भिक्षु राजाओं के मध्य में विहार करता है ।।581
इति नर्ग्रन्थं भद्रवा के निमित्तं चन्द्रचार संजो नाम वयोनिशोऽध्यायः ।। 2311
विवेचन -गाठा, मल, पूर्वाषाका और उत्तरापाला नक्षत्र के दाहिने भाग में चन्द्रमा हो तो बीज, जल और धन की हानि होती है। अग्निभय विशेष उत्पन्न होता है । जब विशाखा और अनुराधा नक्षत्र के दायें भाय में चन्द्रमा रहता ।
I. चन्द्र गुरु