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भद्रबाहुसंहिता
राजा 'चावनिजा गर्भा नागरा दारुजीविनः । गोवा गोजीविनश्चापि धनुस्सङ ग्रामजीविनः ॥146॥ तिलाः कुलस्था माषाश्च माषा मुद्गाश्चतुष्पदाः । पीड्यन्ते बुधघातेन स्थावरं यश्च किञ्चन ॥47॥
चन्द्रमा के द्वारा बुध के घातित होने से राजा, खान से आजीविका करने वाले, नागरिक, काठ में आजीविका करने वाले, गोप, गायों से आजीविका करने वाले, धनुष और सेना से आजीविका करने वाले, तिल, कुलथी, उड़द, मूंग, चतुष्पद और स्थावर पीड़ित होते हैं ||46-47||
कनकं मणयो रत्नं शकाश्च यवनास्तथा ।
गुजरा' पल्लवा मुख्याः क्षत्रिया मन्त्रिणो बलम् ॥48 ॥ स्थावरस्य वनीकाकुनये सिंहला नृपाः । वणिजां वनशख्यं च पीड्यन्ते सूर्यघातने ॥ 490
सूर्य के पास से कनक - सोना, मणि, रत्न, शक, यवन, गुहार, पल्लव आदि मुख्य क्षत्रिय, मन्त्री, सेना, स्थावरों के अन्तर्गत सिहल, वणिज और वनशाखा वाले पीड़ित होते हैं । 48-4911
पौरेयाः शूरसेनाश्च शका बालकदेशजाः ।
मत्स्याः कच्छाश्च वस्याश्च सौवीरा गन्त्रिजास्तथा ॥50॥
पीडयन्ते केतुघातेन ये च सत्वास्तथाश्रयाः । निर्धाता पापवर्ष वा विज्ञेयं बहुशस्तथा ॥51॥
केतु घात द्वारा पुरवासी, शूरमेन, बा, मत्स्य, कच्छ, वत्स्य, सौवीर गन्धि आदि देश वाले पीड़ित होने है तथा यह अनेक प्रकार से संत्रमय पाप बर्ष रहता है |50 51
पाण्ड्याः केरलाश्चोला: सिंहलाः सार्विकास्तथा । "कुनपास्ते तथार्याश्व मूलका वनवासका 52 किष्किन्धाश्च कुनाटाश्च प्रत्यग्राश्च वनेचराः । रक्तपुष्पफलांश्चैव रोहिभ्यां सूर्य-चन्द्रयोः 11530 पाण्ड्य केरल, चोल, सिंहल, साविक, कुनप, विदर्भ, वनवासी, किकिन्धा, कुनाट, वनचर, सतपुल और फल आदि विकृत सूर्य और चन्द्र के संयुक्त होने से
1. या नाधविजा । 2 गुहारा 3. सोधिका गुरु । 4. कुपारते मु० ।
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