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भद्रबाहुसंहिता अंगान सौराष्ट्रान्। समुद्रान भरुकच्छादसेरकान् ।
शृवान् हृषिजलरुहान् केतुहन्याद्विपथगः ॥360 यदि विगथम -कुमार्ग स्थित केतु हो तो अंग, गौराष्ट्र, समुद्र, भरुकच्छ, अमेरयः, नव, हृषिकेश आदि देशों का बिनाग करता है 11 36।।
काम्बोजा रामगान्धारान् आभीरान यवरच्छकान् । चैत्रसोनयकाल सिन्धुनहामन्ययुवायुज. 1371 बालीकान बीनविषयान पर्वताश्चाप्यदुस्वरान् ।
सोधेयं कुरुवैदेहान केतुर्हन्याद्यदुत्तरान ॥38॥ केन उत्तर दिशा में स्थित वाम्बोज, सभगान्धार, आभीर, यवरच्छय, चत्रगौशेय, मिन्छ, बाढीक, वीन विषय, पहाड़ी प्रदेश, गोन्धेय, बुरु, विदेह आदि देशों का मारा करता है ।। 37-38।।
चर्मासुवर्ण कलिगान किरातान् बर्बरान द्विजान् ।
वैदिस्तमिलिन्दांश्च हन्ति स्वात्यां समुच्छितः ॥391 पानी में दिन के चर्मकार, स्वर्णकार, कलिग देश वासी, किरात, व जातियां, जि. वैदियः, भील. पुलिन्द आदि जातिमा का वध होता है ।। 39 ।।
सदशा: केतवो हन्दुस्तासु मध्ये वधं वदेत।
व्याधि शस्त्र क्षुधा मृत्यु परचक्रं च निदिशेत् ।।400 पदृश कोन पास कारन हैं तथा व्याधि, शस्त्र, क्षुधा, मृत्यु और परमामन की गुचना देते है ।।400
न काले नियता केतुः न नक्षत्रादिकस्तथा।
आकरिमको भवत्येव कदाचिदुदितो ग्रहः ।।4।। कनु न उदयास का गमय निश्चित नहीं है और नक्षत्रा, दिशा आदि भी अनिश्चित ही हैं । अगस्मान् कदाचिर ग्रह का उदय हो जाता है ।14111
पत्रिंशत् तस्य वर्षाणि प्रवासः परमः स्मृतः ।
मध्यम: सप्तविशं तु जघन्यस्तु वयोदश ।।4211 बात का 36 वर्ष का उष्ट प्रबारा, 27 वर्ष का मध्यम प्रवाम और तेरह वर्ष का जापना प्रत्याग होता है ।।4241
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ना ग । 2. गान्यां मु । 3. वेण मर ।