________________
364
भद्रबाहुसंहिता
ग्रहण होने से सभी प्रकार के धान्यों में लाभ, स्वाति में ग्रहण होने से तीसरे, पांचवें और नौवें महीने में अन्न के व्यापार में लाभ; विशाखा नक्षत्र में ग्रहण होने से छठे महीने में कुलथी, काली मिर्च, चीनी, जीग, धनिया आदि पदार्थों में लाभ अनुराधा में नौवें महीने में बाजरा, सरसों आदि में लाभ, ज्येष्ठा नक्षत्र में ग्रहण होने से पांचवें महीने में गुट्ट, जीनी मिली यादि पदार्थों में लाभ; मूल नक्षत्र में ग्रहण होने से चावलों में लाभ ; पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में ग्रहण होने से वस्त्र व्यवसाय में लाभ; उत्तराषाढा नक्षत्र में ग्रहण होने से पांचवें मास में नारियल, सुपाड़ी, काजू, किसमिस आदि फलों में लाभ; श्रवण नक्षत्र में ग्रहण होने से मवेशियों के पागार में लाभः घनिष्ठा नक्षत्र में ग्रहण होने से उड़द, मूंग, मोठ आदि पदार्थों में व्यापार में लाभ; शतभिषा नक्षत्र में ग्रहण होने चना में लाभ, पूर्वाभाद्र पद में ग्रहण होने से पीड़ा, उत्तराभाद्रपद में ग्रहण होने से तीन महीनों में नमक, चीनी, गुड़ आदि पदार्थों के व्यापार में विशेष लाभ होता है।
विद्ध फल- - राहु का नि । बिद्ध होना भय, रोग, मृत्यु, चिन्ता, अग्नाभाव एवं अशान्ति मूनक है। मंगल में विद्ध होने पर राह जनक्रान्ति, राजनीति में उथल-पुथल एवं युद्ध होते हैं । बुध या शुक्र में विद्ध होने पर राहु जनता को सुखशान्ति, आनन्द, आमोद-प्रगोद, अभय और आरोग्य प्रदान करता है। चन्द्रमा से राहु विद्ध होने पर जनता को महान् बाप्ट होता है । प्रत्येक ग्रह का बिद्ध रूप सप्तमलासा या पंचशलाका चक्र में जानना चाहिए ।
एकविंशतितमोऽध्यायः कोणजान पापसम्भूतान् केतून वक्ष्यामि ज्योतिषा।
मृदवो दारुणाश्चैव तेयामासं निबोधत !!|| पाप के काम कोण में उत्पन्न हुए कंतुओं का ज्योति के अनुसार वर्णन कम्गा । मदु और दाहण होन के अनुसार उनका पल समझना चाहिए ।। | ।।
एकादिषु शतान्तेषु वर्षषु च विशेषतः ।
केतवः सम्भवन्त्येवं विषमाः पूर्वपापजाः ।। एकादि गौ वर्षों में पूर्व पाए थे. उदय से बिषम फैनु उत्पन्न होता है। इन