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चतुर्दशोऽध्यायः अंगस्फुरण फल-अंग फड़कने का फल
स्थान
फल
स्थान
फल्न
स्थान
फल
पस्तक स्फुरण | पृथ्वी लाभ | वक्षःस्फुरण विजय । | कण्ट स्फुरण आश्चर्य लाभ
तलाट स्फुरण | स्थान लाभ । हृदय स्फुरण | वांछित सिद्व ग्रीचा स्फुरण | रिए भग । कन्या स्फुरण | भोग समद्धि | कटि स्फुरण प्रमोद बन्न पृष्ट रफुरण | युद्ध पराजय | घूमध्य स्फुरण | सुख प्राप्ति कटिपार्श्व स्फु. | प्रीति कपोल रण | वसंग-।। प्रामि प्रयुग्म स्फुरण | महान् सुख मामि स्फुरण स्त्रीनाथ मुख स्फुरण मित्र प्रालि कपाल स्फुरण शुभ आंत्रक स्फुरण | कोशवृद्धि वाह स्फुरण मधुर भोजन नेत्र स्फुरण
!भा सफरणः न पानि | ना रणधगम नेत्रकोण स्फुरण | लक्ष्मी लाभ | कुक्षि स्फुरण | सुप्रीति लाग वरितदेश स्फुरण | अभ्युदय नेवसीय प्रिय समागम | उदर स्फुरण को मामि उरमाणात लाभ नित्रपक्ष स्फुरण | सफलता, लिंग स्फुरण स्त्रीलाम जानु !
सनसम्मान | गुदा मरण थाह. प्राप्ति |चा स्फ. ५ | Mাশি মাHি | नेत्रपक्ष पलक | मुकदमें में | वृषण स्फुरण प्राभि | दोपरि पुरण | स्थान-नाभ
स्फुरण विजय औक्षण | प्रियनर ला | पादतल भाग | नृपत्व नेत्रकोपा देश | कलत्र लाम | नु स्फुरण ।
पाद स्फुर" अलाग
भय
नासिका स्फुरण | प्रीति सुख हस्त स्फुरण सद
द्रव्यलाभ
पल्लीपतन और गिरगिट आरोहग फलबोधक चक्र
स्थान
ग्थान
स्थान
बहुधन
शिरलाभ ललाट वग्दर्श-मध्य राज्यसंयध उत्तसंग्र | F-1A B. नवन.11 नासायाधि दक्षिण के. आयुवृद्धि वामकर्ण नेत्र चिनमामि नमा लामभुजा रागभय कंठशत्रुनाश स्तयि दुर्भाग्य बदामनाभ पृण्देश जानुस् शुभागम |गंधा शुभ हस्तद्वय वस्त्रलाप का विजय
प्रालि करिमा सवारी दक्षिा कर, घन वाभनि
घनाभ नामिका मिछान्न लाभ मणिबंध नाश बंध कामनाभ | सागपाद नाश
भोज गुल्फ वचन केशान्त म यक्षिणपाद | गयन
적
स्वीनाश दाग पण