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चतुर्दशोऽध्यायः
245 _ को चन्द्रमा के शृगों का अवलोकन करना चाहिए ।। ! 33||
वामशृंगं यदा वा स्यादुन्नत' दृश्यते भृशम् ।
तदा सृजति लोकस्य दारुणत्वं न संशयः ।।1341। यदि चन्द्र का वायां शृग उम्मन मालूम हो तो लोक में दारुण भय का संचार होता है, इसमें संजय नहीं है ।। | 3-411
अवस्थितं नणां पापं तिर्यकस्थं राजमन्त्रिणाम् ।
अधोगतं च वसुधां सर्वां हन्यादसंशयम् ।। १35॥ ऊध्वंस्थित चन्द्रमा मनग्यों के पाप का, तिपय गजा और मन्त्री के पास } का, अधोगत समस्त पृथ्वी के पा. निरान्दह विनाश करता है ।। 1 3 511
शरलं रक्ते भयं पीते धूसे दुभिक्षांवद्रवे।
चन्द्र सदोदिते ज्ञेयं भद्रबाहुवची यथा ।।136।। चन्द्रमा यदि : सवर्ण का सदिस हो तो गन्ध वा भव, तिवर्ण का हो तो । दुर्भिक्ष का भय और धूम्नवर्ण होने पर भागय का सूचक होता है, सा भद्रबाहु स्वामी का वचन है ।। | 3611
दक्षिणात्परतो दष्ट: चौरतभयंकरः ।
अपरे तोयजोवानां वायव्ये हन्ति वै पदम् ।।137॥ यदि दक्षिण की और शृप पा रस्तवर्णादि नि बनाई गई तो चोर और दुत . को भयकारी होता है, पूर्व को जोर दिसलाई 'हे ना जल-जन्तुओं का और वायव्य । दिशा की ओर दिलाई पढ़े तो लोग मा विना गा हाना ।। 371
भववदत्स च लगेषु या.घु प्रवदासु च ।
वाहनेष च हण्टेषु विन्द्याद्भयमुपस्थितम् ।।138 शिवलिगों में विवाद होने पर, रावारियों में भाला' होने पर और वाहनों में प्रसन्नता दिखलाई पड़न पर महान भय होता
उर्व वषो अदा नदत् तदा प्याच्च भयंकरः ।
ककदं चलते वापि तदापि स भयंकर: ।1139॥ यदि बैल --गांड ऊपर नो मह ार गर्जा बरे ना त्यान भयंकर होता है और वह अपन ककुद (कुब्ब) को चंबल करे तो भी भयंकर मालिना चाहिए ।।। 39।।