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भद्रबाहुसंहिता
वर्ग और शरद में शुक्ल वर्ण का सूर्य शुभप्रद है, इन वर्षों से विपरीत वर्ण हो तो भयप्रद है ।। 8911
दक्षिणे चन्द्रशृग तु यदा तिष्ठति भागवः ।
अभ्युद्गतं तदा राजा बलं हन्यात सपार्थिवम् ॥900 • यदि चन्द्रमा के उदय काल में चन्द्रमा के दक्षिण शृग पर शुक्र हो तो ससैन्य राजा का विनाश होता है 11910॥
चन्द्रगे यदा भीमो- विकृतस्तिष्ठतेतराम ।
भशं प्रजा विपद्यन्ते कुरव: पार्थिवाश्चला: ।। 111 यदि चन्द्रशृग पर विकृत मंगन स्थित हो तो पजा को अत्यन्त काट होता है और पुरोहित एवं राजा चंचल हो जाते है ।19. ||
शनैश्चरों यदा सौभ्यशृंगे पर्य पतिष्ठति ।
तदा वृष्टिभयं घोरं दुभिक्षं प्रकरोति च ॥92॥ यदि चन्द्रग पर शनैश्चर हो तो वर्षा का भय होता है और भयंकर दुर्भिक्ष होता है 1920
भिनत्ति सोम मध्येन ग्रहेष्वन्यतमो यदा।
तदा राजभयं विन्यात् प्रजाक्षोभ च दारुणम् ॥93।। जब को भी ग्रह चन्द्रमा न मा दिन नारता है तो गज'भय होता है और प्रजा को दारूण क्षोभ होना ।।93।।
राहणा गृह्यते चन्द्रो यस्य नक्षत्रजन्मनि ।
रोग मृत्युभयं वापि तस्य कुर्यान्न संशयः ॥940 जिस व्यक्ति के जन्म नक्षत्र पर गह चन्द्रमा का ग्रहण करे-चन्द्रग्रहण हो तो रोग और मत्य भय निम्मन्देश होता है, 1194।।।
फरग्रहयतश्चन्द्रो गृह्यने दृश्यतेऽपि वा।
यदा क्षुभ्यन्ति लामन्ता राजा राष्ट्र च घोड्यते ॥951 क्रूर ग्रह युगल चन्द्र गा गहन माग ग्रहीत या दाट हो तो राजा और सामन्त शुब्ध होते हैं और गठनो पीड़ा होती है ।195॥
1. प्रभाकर प.। 2. भीमान बिक अगम् मु.। 3. प्रजास्तन मु । ०