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चतुर्दशोऽध्यायः
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मिसुधा
प्रजापति की प्रतिमाओं के विकार उनात का फल सामान्य ही अवगत करना चाहिए ।।82-83॥
चन्द्रस्य वरुणस्यापि रुद्रस्य च वधषु च ।
समाहारे यदोत्पातो राजानमहिषोभयम् ॥8411 चन्द्रमा, वरुण, शिव और पार्वती की प्रतिमाओं में उत्पात हो तो राजा को , पट्टरानी को भय होता है 18411
कामजस्यः यदा भार्या या वान्या: केवला: स्त्रियः ।
कुर्वन्ति किञ्चिद् विकृतं प्रशनस्त्रीषु तद्भयम् ॥85।। यदि कारदेव बो र ती रति की प्रतिमा अथवा किसी भी रात्री की प्रतिमा में उत्पात दिखलाई गने तो प्रधान रियों में भय ना रांचार होता है ।।85।।
एवं देशे च जातौ च कुते पाण्डिभिक्षुषु ।
तज्जातिप्रतिरूण स्वैः स्वदेवै: शुभ वदेत् 186॥ इस प्रकार जाति, देश कुल और धर्म की उपासना आदि के अनुमान अपनेअपने आराध्य देव की प्रतिमा के विकार उत्पात में अपना-अपना शुभाशुभ फल ज्ञात करना चाहिए 1861
उद्गच्छमानः सविता पूर्वतो विकतो यदा।
स्थावरस्य विनाशाय पृष्ठतो यायिनाशनः ।।87॥ ___यदि उदय होता हुआ गूयं पूर्व दिशा में -- सम्भावित उत्पात युक्त दिखलाई । पड़े तो स्थावर---निवासी राजा श्री पीछे की ओर विकृत दिखलाई पड़े तो : यायी -आक्रामक राजा के विनाश का गुचक होता है ।। 8711
हेमवर्णः सुतोयाय मधुवों भयंकरः।।
शुक्ले च सूर्यवणऽस्मिन् सुभिक्षं क्षममेव च ॥४४॥ यदि उदयकालीन गूर्य स्वर्ण वर्ण का हा तो जल की वर्षा, मध वर्ण का हो तो । लाभप्रद और शुगल वर्ण का हो तो भिक्ष और कल्याण की गचना देता है. 118811
हेमन्ते शिशिरे रक्त: पीतो ग्रीष्मवसन्तयोः ।
वर्षासु शरदि शुक्लो विपरीतो भयंकरः ।।891 हमन्त और शिशिर ऋतु में लाल वर्ण, ग्रीष्म और वसन्त ऋतु में पीत एवं ।
1. न महासजसूनपान गाय महिपाय च।2. का यायम |