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भद्रबाहुसंहिता
विनाश करता है तथा वाम ओर से गमन करने वाला शुक्र भयंकर रोग उत्पन्न करता है || 14311
यदा भाद्रपदा सेवेत् धूर्तान् दूतांश्च हिंसति । मलयान्मालवान् हन्ति मर्दना रोहणे तथा ।। 1440
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में स्थित शुक्र धूर्त और दूतों की हिंसा करता है तथा मर्दन और आरोहण करने वाला शुक्र मलय और मालवानों की हिंसा करता है ।।।44।। दूतोपजीविनो वैद्यान् दक्षिणस्थः प्रहिसति ।
वामगः स्थावरान् हन्ति भद्रबाहुवचो यथा ||1450
दक्षिस्य शुक्र दौत्य कार्य द्वारा आजीविका करने वालों और वैद्यों का घात करता है तथा वामस्थ शुक्र स्थविरों की हिंया करता है, ऐसा भद्रवाह स्वामी का वचन है ।। 1451।
उत्तरां तु यदा सेवेज्जलजान् हिंसते सदा । वत्सान् वाह्लोकगान्धारानारोहणप्रमर्दने ॥146
उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में स्थित एक जलज- -जलनिवासी और जल में उत्पन्न प्राणियों का घात करता है। इस नक्षत्र में आरोहण और प्रमर्दन करने वाला शुक्र वत्स्य वाचक और गान्धार देशों का विनाश करता है || 14611
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दक्षिणे स्थावरान् हन्ति वामनः स्याद् भयंकरः । 'मध्यगः सुप्रसन्नश्च भार्गवः सुखमावहेत् ||1470
होता
दक्षिणस्थ शुक्र स्थावरों का विनाश करना है और वामग शुक्र भयंकर है । मध्यग शुक्र प्रसन्नता और सुख प्रदान करता है । 147 ।। भयान्तिकं नागराणां नागरांश्चोप हिंसति ।
भागवो रेवतीप्राप्तो दुःप्रभश्च कृशो यदा ॥148॥
रेवती नक्षत्र को प्राप्त होने वाला शुक्र नागरिक और नगरों के लिए जय और आतंक करने वाला है ।। 148 ।।
मर्दनारोहणं हन्ति नाविकानथ नागरान् ।
दक्षिणो गोपकान् हन्ति चोत्तरो" भूषणानि तु ।। 149
रेवती नक्षत्र को मर्दन और आरोहण करने वाला शुक्र नाविक और नागरिकों की हिंसा करता है। दक्षिणस्थ शुक्र गोपों का घात करता है और उत्तरस्थ भूपणों का विनाश करता है || ! 49 |
1. मध्यमः " 1 2. उत्तरे मु