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पंचदशोऽध्यायः
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है। तीनों पूर्वा-पूर्वाभाद्रपद, पूर्वाफाल्गुनी और पूर्वाषाढ़ा, उत्तरफाल्गुनी, उत्तरापाढ़ा, उत्तराभाद्रपद-रोहिणी और भरणी नक्षत्रों में शुक्रवा अस्त हो तो पंजाब, दिल्ली, राजस्थान, विन्ध्यप्रदेश के लिए गुभिक्षदायत्रः, किन्तु इन प्रदेशों में राजनीतिक संघर्ष, धान्य भाव सस्ता तथा उक्त प्रदेशों में गेग उत्पन्न होते है । बंगाल, आसाम और बिहार, उड़ीसा के लिए उक्त प्रकार का शुभास्त शुभकारक है। इन प्रदेशों में धान्य की उत्पत्ति अच्छी होती है। धन-धान्य की गनित दिगत होती है । अन्न का भाव सस्ता होता है। शुक्र का भरणी नक्षत्र पर अस्त होना पशुधों के लिए अशुभकारक है। पशुओं में नाना प्रकार के रोग फैलगे हैं तथा धान्य और तृण दोनों का भाव महंगा होता है। जनता को वाट होता है, राजनीति में परिवर्तन होता है । शुक्र का मध्यरात्रि में अस्त होना तथा आश्लेषाविद्ध मघा नक्षत्र में शुक्र का उदय और अस्त दोनों ही अशुभ होते हैं : इग प्रकार की स्थिति में जनसाधार] को भी कार होता है। ____ शुक के ममन की नौ वीथियाँ है ...नाग, गज, शिवत, वृषभ, गो, जन्दगव, मग, अज और दहन-वैश्यानर, ये वीथियां अग्विनी आदि नीन-तीन नक्षयों की मानी जाती हैं । विगी-विमी के मन में स्वाति, भरणी और वाति का नक्षत्र में नागवीथि होती है। गज, ऐगवत और वपम नामर वीथियों में रोहिणी से उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र तक तीन-तीन बीथियां हुआ करती है तथा अश्विनी, रेवती, पूर्वाभाद्रपद और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में गोत्री थि है। श्रवण, धनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्र में जगद्गवः बीथि: अनुराधा, ज्याठा और मूल नक्षत्र में मुगवीथि; हस्त, विशाखा और चित्रा नक्षत्र में अजबीथि 1 यूपढ़ा और दागपादा में दहन वीथि होती है। शुक्र का भरणी नक्षत्र में उनरमार्ग, पूर्वाफाल्गुनी रो मध्यममार्ग
और पूर्वागाठा में दक्षिणमार्ग माना जाता है। जब उन रवीथि में शुक्र अस्त या उदय को प्राप्त होता है, तो प्राणियों के सुख सम्पत्ति और धन-धान्य की वृद्धि करता है। मध्यम वीथि में रहने में शुक्र मध्यम फल देता है और जनन्य या दक्षिण वीथि में विद्यमान शुक्र कष्टप्रद होता है । आर्द्रा नक्षत्र मे आरम्भ करके मृगशिर तक जो नौ वीथियाँ हैं, उनमें णुनः का उदय या अस्त होने में यथानम में अत्युत्तम, उत्तम, ऊन, सम, मध्यम, रन, अधग, कष्ट और काटतम फल उत्पन्न होता है। भरणी नक्षत्र से लेकर चार नक्षत्रों में जो मण्डल- बीथि हो, उसकी प्रथम वीथि में शुक्र या अस्त या उदय होने में मुभिक्ष होता है, किन्तु अंग, बंग, कलिंग और वाली। देश में भय होता है । आर्द्रा में लेकर चार नक्षत्रा-आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य
और आपलेपा इन चार नक्षत्रों के मण्डल में शुक्र का उदय या अस्त हो तो अधिक जल की वर्षा होती है, धन-धान्य सम्पत्ति वृद्धिंगत होती है। प्रत्येक प्रदेश में शान्ति रहती है, जनता. में सौहार्द्र और प्रेम का संचार होता है । यह द्वितीय मण्डल उनम माना गया है। अर्थात शुक्र का भरगी से मृगशिरा नक्षत्र तक प्रथम