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________________ पंचदशोऽध्याय: 291 __ की ओर दिखलाई पड़ता है ।।2 1211 गजवीथिमनुप्राप्त: प्रवासं कुरुते यदा। पंचाशीति तदा हानि गत्वा दृश्येत पृष्ठतः ।।213।। गजवीथि को गुन. प्राप्त होकर शुक्र प्रवास करे तो 85 दिनों के पश्चात् पीछे की ओर दिखलाई पड़ता है ।12 1311 नागवीथिमनुप्राप्तः प्रवासं कुरुते यदा। पंचपंचाशत्तदाहानि गत्वा दृश्येत षष्ठतः ॥2141 नागीथि को पुनः प्राप्त होनार शुक्र प्रवास करे तो 55 दिनों के पश्चात् पीछे ___ की ओर दिखलाई पड़ता है 112 1 411 वैश्वानरपथं प्राप्त: प्रवासं कुरुते यदा। चतुविशत्तदा हानि मत्वा दृश्येत पूर्वतः ।।215॥ वैश्वानर पप्राप्त होपार शुक्र प्रवास करे तो 24 दिनों के पश्चात् पूर्व __की ओर दिखलाई पड़ता है ॥21511 मगवीथिमनुप्राप्तः प्रवासं कुरुते यदा। द्वाविंशति तदाहानि गत्वा दृश्येत पूर्वत: ॥216।। शुक्र जन मृगवीथिको पुन: प्राप्त होकर अस्त हो ता 22 दिनों के पश्चात पूर्व की ओर दिलाई गढ़ता है ।। 2 16॥ अजवोथिमनुप्राप्त: प्रवासं कुरुते यदा। तदा विशतिरात्रेण पूर्वतः प्रतिदृश्यते 12 171 ___ शुत्रा जब अजमाथि को पुनः प्राप्त होणार अस्त हो तो 24 जिया काचा पूर्व की ओर उदय होता है ।121710 जरदगवपथं प्राप्तः प्रवासं करुते यदा । तदा सप्तदशाहानि गत्वा दृश्येत पूर्वतः ॥218॥ अब शुक्र जरद्गवपक्ष को प्राप्त हो कार. अस्त होता है तो 1 7 दिनों के पश्चात् पूर्व की और उदय होता है ॥218॥ गोवीथीं समनुप्राप्त. प्रवास कुरुते यदा। चतुर्दशदशाहानि गत्वा दृश्येत पूर्वतः ।।219।। गोत्रीथि को प्राप्त होकर जब अस्त होता है तो बौयह दिनों पश्नान पूर्व की और उदय होता है ।।2 1911
SR No.090073
Book TitleBhadrabahu Sanhita Part 1
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages607
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size13 MB
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