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भद्रबाहुसंहिता
वैश्वानरपथं प्राप्त: पूर्वतः प्रविशेद यदा।
षडशीति तदाऽहानि गत्वा दृश्येत पृष्ठतः ।। 206॥ जब शुक्र वैश्वानरपथ में पूर्व की ओर से प्रवेश करता है तो 86 दिनों के पश्चात् पीछे की ओर दिखलाई पड़ता है ।।206।।
मगवीथीं 'पन प्राप्त: प्रतापदि गति !
चतुरशीति तदाऽहानि गत्वा दृश्येत पृष्ठतः ।।207॥ ___ यदि शुक्र मगवीथि को दुबारा प्राप्त होकर अस्त हो तो 84 दिनों के पश्चात् पीछे की ओर दिखलाई पड़ता है ।।207॥
अजवीथिमनुप्राप्तः प्रवासं यदि गच्छति ।
अशोति पडहानि तु गत्वा दृश्येत पृष्ठतः ।।20811 यदि शुभ अजीथि को पुनः प्राप्त कर अस्त हो तो 86 दिनों के पश्चात् पीछे की ओर दिखलाई पड़ता है ।।208||
जरदगवपथप्राप्त: प्रवास यदि गच्छति ।
सप्तति पंच वा हानि गत्वा दश्वेत पृष्ठतः ।1209।। यदि शुक जरगवय को प्राप्त होकर प्रवास कर तो 75 दिनों के पश्चात् पीछे की ओर दिखलाई पड़ता है ।। 209॥
गोवीथों समनुप्राप्तः प्रवासं कुरुते यदा। ___ सप्तति तु तदाऽहानि गत्वा दृश्येत पृष्ठत: 1210॥ गावीथि को प्राप्त होकर शुत्र प्रवास करे तो 70 दिनों के पश्चात् पो की ओर दिखलाई पड़ता है ।। 2 1 UR
वृषवीथिमनुप्राप्त: प्रवासं कुरुते यदा।
पंचष्टि तदाऽहानि गत्वा दृश्येत पृष्ठतः ।।211।। पवीथि को प्राप्त होकर शुक्र प्रवास करे तो 6 5 दिनों के पश्चात् पीछे की ओर दिउलाई पड़ता है ।1 21 1।।
एरावणपथं प्राप्तः प्रवासं कुरुते यदा।
ष्टि तु स तदा हानि गत्वा दृश्येत पृष्ठतः ॥22॥ रावणवीशि को प्राप्त हो कर प्रवामा करे तो 60 दिनों के पश्चात् पीछे
अया।