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भद्रबाहुसहिता
हो, मातक रेखा मीधी और रवच्छ हो बधांगली ना प्रथम पर्व लाया हो. गुरु की अंगली सीधी हो तथा मुर्य पर्वत उठा हो बह दयालु न्यायाधीश होता है । जिराकी अंगुलियों लम्बी और आस-पास सटी हों, अंगूठा लम्बा और सीधा हो, मस्तक रेखा गोधी और कृति की हो तथा हथेली चपटी हो तो व्यक्ति बैरिस्टर या वकील होता है।
जिमान हाथ का गुरुपर्वत और तर्जनी लम्बी हो, चादपर्वत उच्च हो तथा बुधागदी नुकीली हो, साथ ही मरतकरेखा लम्बी और नीचे झुकी हो तो वह व्यक्ति दर्शनशास्त्र का विद्वान् होता है । जिसके शनि और गुरुक्षेत्र उच्च हों, शनिपर्वत पर त्रिकोण चिह्न हो और सूर्य रेखा शृद्ध हो वह व्यक्ति योगी या साध होकर पूर्ण गौरब गाता है। जिसका अंगठा मोटा और टेवा हो, उसकी इच्छा-शक्ति प्रवल होती है । जिमो हाथ में बड़ा चतुष्कोण या पृथ्व.रणी रेखा हो, वह सब मनुष्यों में श्रेष्ठ और सब का स्वामी होता है। हथेली के मध्य में कलश, स्वस्तिक, मग, गज, मत्स्य आदि के निरन शुभ माने जाते हैं । ___अंगूठे के मन में जितनी स्थूल रेखाएँ ही उत्तने भाई और जितनी सुक्ष्म रेखाएँ हों उतनी बहिन होती हैं । अंगठे के अधोभाग में जिसके जितभी रेखा हो, उसके उत्तरे ही पुत्र होते हैं । जितनी रेखाएं सुक्ष्म होती हैं उतनी ही कन्या होती हैं। जितनी ना किन्न-भिन्न होती हैं, उतनी सन्ताने मत और जितनी रेखाएं अखण्ड और सम्पूर्ण होती है उसने बालक जीवित रहते है। __ स्वप्न निमित. ..यान द्वारा शुभाशुभ का वर्णन करना इस निमित्त ज्ञान का विषय है। दुरट, . अनुभूत, प्रथित, कल्पित, भाविक और दोपज इन पात प्रकार के यूटना में मेमविक स्वप्न या फल यथार्थ निकलता है। स्वप्न भी वर्मफल वा गुच क है, आगामी शुभाशुभ नामफल की सूचना देता है । सूचक निमित्तों में स्थान का भी महत्वपूर्ण स्थान है। स्वप्नों का फलादेश इस ग्रन्थ के 26 वें अध्याय में लथा परिशिष्ट रूप में अंकित 30 वें अध्याय में विस्तार के साथ लिखा गया है। अतः यहां स्वप्नों का फलादेश नहीं लिखा जा रहा है ।
निमित्तज्ञान का अंगभूत प्रश्नशास्त्र प्रश्न शास्त्र निमित्तज्ञान का एक प्रधान अंग रहा है। इसमें धातु, पुल, जीव, भाट, मुष्टि, लाभ, हानि, रोग, मृत्यु, भोजन, शयन, जन्म, नम, शल्यानयन, मना गमन, नदियों की बाढ़, अष्टि, अतित्राष्टि, अनावृष्टि, फमल. जय-पराजय, लागालाभ, विद्या सिद्धि, विवाह, सन्तान लान, यमः प्राप्ति एवं जीवन के विभिन्न आवश्यक प्रश्नों का उत्तर दिया गया है। जैनाचार्या ने अष्टांगनिमित पर आने इ. ग्रन्थ लिखे हैं। प्रस्तुत प्रश्नशास्त्र निमित्त नाम का यह अंग है जिसमें बिना किसी गणित क्रिया के विकास की बातें बतलायी जाती है । शानदीपिका के प्रारम्भ में कहा है.....