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पंचदशोऽध्यायः
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क्षत्रियों के लिए मृत्यु एवं बायीं ओर से जब गमन करता है तो ब्राह्मणों के लिए । भयंकर होता है ।।1371
सौरसेनांश्च मत्स्यांश्च श्रयणस्थ: प्रपोडयेत् ।
वंगांगमगधान् हन्यादारोहणप्रमर्दने ॥1381 यदि शुक्र श्रवण नक्षत्र में स्थित हो तो सौरसेन और मत्स्य देश को पीड़ित करता है । श्रवण नक्षत्र में आरोहण और प्रमर्दन करने से शुक्र बंग, अंग और मगध का विनाश करता है ।। 138।।
दक्षिणः श्रवणं गच्छेद् द्रोणमेघं निवेदयेत् ।।
वामगस्तूपघाताय नृणां च प्राणिनां तथा।।139॥ यदि दक्षिण की ओर से शुक्र श्रवण नक्षत्र में जाय तो एक द्रोण प्रमाण जल की वर्षा होती है और बायीं ओर मे गमन नारे तो मनुष्य और पाओ के लिए घातक होता है ।11 39॥
धनिष्ठास्थो धनं हन्ति समृद्धाश्च कुटुम्बिनः ।
पाञ्चालान् सूरसेनांश्च मत्स्यानारोहमर्दने ।।1401 यदि धनिष्ठा नक्षत्र में शुक्र गमन करे तो समृद्धशाली, धनिक कुटुम्वियों के धन का अपहरण करता है । धनिष्ठा नक्षत्र के आरोहण और मर्दन करने पर शुक्र पाञ्चाल, सूरसेन और मत्स्य देश का विनाश करता है ।।14011
दक्षिणो धनिनो हन्ति वामगो व्याधिकृद् भवेत् ।
मध्यग: सुप्रसन्नश्च सम्प्रशस्यति भार्गवः ॥141॥ दक्षिण की ओर गमन करने वाला शुक्र धनिकों का विनाश और बायीं ओर से गमन करने वाला शुक्र व्याधि करने वाला होता है । मध्य से गमन करने वाला शुक्र उत्तम होता है तथा सुस्न और शान्ति की वृद्धि करता है ॥14 11
शलाकिनः शिलाकृतान् वारुणस्थ: प्रहिसति ।
कालकूटान् कुनाटांश्च न्यादारोहमर्दने ।।1421 शतभिषा नक्षत्र में स्थित शुक्र शलाकी और शिलाकृतों की हिमा करता है। इस नक्षत्र में आरोहण और मर्दन करने वाला शुक्र कालकूट और कुनाटों की हिंसा करता है ।। 1420
दक्षिणो नोचकर्माणि हिंसते नीचकमिणः ।
वामगो दारुणं व्याधि ततः सृजति भार्गवः ।।143॥ दक्षिण से गमन करने वाला शुक्र नीच कार्य और नीच कार्य करने वालों का