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भद्रवाइसंहिता चंदन-लकड़ी आदि के द्वारा आजीविका करने वालों का विनाश करता है। 13।।
यदाऽऽरुहेत् प्रमत कुटुम्बा भूश्च दुखिताः ।
कन्दमूलं फलं हन्ति दक्षिणो वामगो जलम् ॥32॥ दक्षिण की ओर से गमन करता हुआ शुक्र जब मूल नक्षत्र का आरोहण या प्रमर्दन करे तो कुटुम्ब, भूमि आदि दुःखित होती है, कन्द, मूल, फल का विनाश होता है और बायीं ओर से गमन करता हुआ जल का विनाश करता है ।।1321
'वामभूमिजलेचारं आषाढस्य: प्रपीडयेत् ।
शान्तिकारश्च मेघश्च तालोरारोह-मर्दने ॥133।।
पाढा नक्षत्र में स्थित शुक सभी भूमि और जलचर आदि को पीड़ा देता है और शुक्र के आरोहण और मर्दन करने से शान्तिकर जल की वर्षा होती हैं।1133॥
दक्षिण: स्थविरान् हन्ति वामगो भयमावहेत् ।
सुवर्णो मध्यम: स्निग्धो भार्गव: सुखमावहेतु ।।134॥ दक्षिण की ओर से गगन कर पूर्वापाढा नक्षत्र में विचरण करने वाला शुक्र स्थावरो-----निवासी राजाओं का घात करता है और बायीं ओर गमन करने वाला शुक्र भय उतान्न करता है तथा सुन्दर, स्निग्ध मध्यम से गमन करने वाला पाक सुख उत्पन्न करता है ।। 1 3411
यद्युत्तरासु तिष्ठेच्च पाञ्चालान् मालवत्रयान् ।
पीडयेन्मई येद्दोहा विश्वासाभेदकृत्तथा ॥135॥ यदि उत्तराढ़ा नक्षत्र में शुऋ स्थित हो तो पाञ्चाल तथा तीनों मालवों की पीडित. गदित, द्रोहित एवं विश्वास के कारण भद उत्पन्न करता है ।।। 35।।
अभिजित्स्थ: कुरून् हन्ति कौरव्यान् क्षत्रियांस्तथा।
"पशव: साधवश्चापि पीड्यन्ते रोह-मर्दने 1136॥ अभिजित् नक्षत्र पर जब शुक्र स्थित रहता है तो कौरवों तथा क्षत्रियों का मर्दन करता है तथा अभिजित् नक्षत्र में आरोहण और मर्दन करने पर शुक्र पशु और साधुओं को पीड़ित करता है ।। 1 3641
यदा प्रदक्षिणं गच्छेत् पञ्चत्वं कुरुमादिशेत् ।
वामतो गच्छमानस्तु ब्राह्मणानां भयंकरः ।।1371 इस नक्षत्र के लिए दक्षिण की ओर से जब शुक्र गमन करता है तो कुरुवंशी
1. भूमिजल परान मु. । 2. हातकेशांमध मरीश्च मु० ॥ ३. नद्यश्च म ।