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पंचदशोऽध्यायः
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यदि शुक्र मघा नक्षत्र के दक्खिन भाग का भेदन करे तो आढक प्रमाण जल की वर्षा होती है और धान्य महंगा होता है |1113
विलम्बेन यदा तिष्ठेत् मध्ये भित्त्वा यवा मघाम् । आढकेन हि धान्यस्थ प्रियो भवति ग्राहकः 11141
जब मघा के मध्य का भेदन कर शुक्र अधिक समय तक रहता है तो आढक प्रमाण जल की वर्षा होती है और धान्य प्रिय होता - महंगा होता है । 114 मद्यानामुत्तरं पाश्वं भिनत्ति यदि भार्गवः ।
कोष्ठागाराणि पीड्यन्ते तदा धान्यमुपहसन्ति ॥1150
यदि मघा के उत्तर भाग का शुक्र भेदन करे तो धान्य के लिए हिंसा होती है और कोष्ठागार - खजांची लोग पीड़ित होते हैं ।।115॥
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प्राज्ञा महान्तः पीड्यन्ते ताम्रवर्णो यदा भवुः । प्रदक्षिणे विलम्बश्च महदुत्पादयेज्जलम् ॥116॥
जब शुक्र ताम्रवर्ण का होता है तो विद्वान् मनीषी व्यक्ति पीड़ित होते हैं और प्रदक्षिणा में शुकविलम्ब करे तो अत्यधिक वर्षा होती है || 1 ||
पूर्वाफाल्गुनीं सेवेत गणिका रूपजीविनीः ।
पीडयेद् वामगः कन्यामुग्रकर्माणं दक्षिण: ।1170
पूर्वाफाल्गुनी में शुक्र का बायीं ओर से आरोहण हो तो रूप से आजीविका करने वाली गणिकाएँ पीड़ित होती हैं और दाहिनी ओर से आरोहण हो तो उग्रकार्य करने वाले पीड़ित होते हैं 117
शबरान् प्रतिलिङ्गानि पीडयेदुत्तरां 'श्रितः । वामगः स्थविरान् हन्ति दक्षिणः स्त्रीनिपीडयेत् ॥ 18॥ उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में बायीं ओर से शुक्र आरोहण करे तो शबर, ब्रह्मचारी, स्थविर — निवासी राजा की पीड़ा होती है तथा दाहिनी ओर से आरोहण करने पर स्त्रियों को पीड़ा होती है 11118
काशांश्च रेवतोहस्ते पीडयत् भार्गवः स्थितः । दक्षिणे चोरघाताय वामश्चोरजयावहः ॥11॥
दाहिनी ओर में रेवती और हस्त नक्षत्र में शुक्र स्थित हो तो काश और चोरों का बात करता है और बांयी ओर से स्थित होने पर चोरों को जय लाभ देता है ॥19॥
1. धान्यार्थमुपहनिमुन । 2. सदा नृपा: मु० । 3. महान् भु० । 4. गत गुरु ।