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भद्रबाहुसंहिता
हास-परिहास, आमोद-प्रमोद होता है । विदर्भ और दासों को भी प्रसन्नता और । आमोद-प्रमोद प्राप्त होता है ।।। 0714
शम्बरान् 'पुलिन्दकाश्च श्वानषण्ढांश्च वल्कलान् ।
पीडयेच्च महासण्डान् शुक्रस्तादृशेन यत् ।। 1080 उक्त प्रकार का शुक्र भील, पुलिन्द, श्वान, नपुंसक, वल्कलधारी और अत्यन्त नपुंसकों को अत्यन्त पीड़ित करता है ।।10४॥
प्रदक्षिणे प्रयाणे तु द्रोणमेकं तदा दिशेत् ।
वामयाने तदा पोडां ब्र यात्तत्सर्वकर्मणाम् ॥109॥ पुनर्वसु का घातकर शुक्र के दाहिनी ओर से प्रयाण करने पर एक द्रोण प्रमाण जल की वर्षा कह्नी चाहिए और वायीं ओर से प्रयाण करने पर सभी कार्यों का घात कहना चाहिए ॥10911
पुष्यं प्राप्तो द्विजान् हन्ति पुनर्वसावपि शिल्पिनः ।
"पुरुषान् धर्मिणश्चापि पीड्यन्ते चोत्तरायणाः ॥10॥ पुष्य नक्षत्र को प्राप्त होने वाला उत्तरायण शुक्र द्विज, प्रजावान् और धनुष के शिल्पी और धार्मिक व्यक्तियों को पीड़ित करता है ।। 110।।
वङ्गा उत्कल-वाण्डाला: पार्वतेयाश्च ये नराः।
इक्षुमन्त्याश्च पीड्यन्ते आर्द्रामारोहणं यथा ॥11॥ जब शुकः आर्द्रा में आरोहण करता है तो वंगवासी, उत्कालवासी चाण्डाल, पहाड़ी व्यक्ति और इक्षुमती नदी के किनारे के निवासी व्यक्तियों को पीड़ा होती है ।।11111
'मत्स्यभागीरथीनां तु शुक्रोऽश्लेषां यदाऽऽहेत।
वामगः सजते व्याधि दक्षिणो हिसते प्रजा: 11120 जब शुक्र बायें जाता हुआ आश्लेषा में भारोहण करता है तो मत्स्यदेश और भागीरथी के तटनिवासियों को व्याधि होती है और दक्षिण से गमन करता हुआ आरोहण करता है तो प्रजा की हिसा होती है ।। 1 1 211
मघानां दक्षिणं पाश्वं भिनत्ति यदि भार्गवः । आढकेन तदा धान्यं प्रियं विन्धादसंशयम ॥11311
1, मांगल्याच भु.। 2. महामु मा । 3. प्राशा च धन सिगन: ग । 4. महा भु। 5. दुल- भु. । 6. यदा गु० । 7. पणी गोमरी पु. । . सुगति म । 9. हिंगन ।