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चतुर्दशोऽध्यायः मधरा: क्षोरवक्षाश्च श्वेतपुष्पफलाश्च ये।
सोम्यायां दिशि यज्ञार्थ जानीयात् प्रतिपुद्गलाः ।।2411 जो मधुर, श्रीर, श्वेत पुप और फलों मे युक्त वृक्ष उत्तर दिशा में होते हैं, वे यज्ञ के लिए उपात के फल की सूचना देने 1 अर्गन, उत्तर दिशा में मधुर, श्वेत पुस्प और फला गे युक्त और वा बाह्मणों के लिए उत्पात पी गुनना देत है ।।24।।
कषायमधुरस्तिक्ता उष्णवीविलासिनः ।
रक्तपुष्पफला: प्राच्यां सुदीर्घनृपक्षत्रयोः ।।25। कपाय, मधुर, तिात, 'जाणवीर्य, विलासी, लाल पुष्प और फल वाले वृक्ष पूर्व दिशा में बलवान् राजा और क्षत्रियों के लिए प्रतिपुदगल--उत्पातमुचक हैं ।।251
अम्ला: सलवणा: स्निग्धा; पीतपुष्पफलाश्च ये।
दक्षिण दिशि विज्ञेया वैश्यानां प्रतिपुद्गला: ॥26॥ आम्ल, लवणयुक्त, स्निग्ध, पीत हरूप और फल बाग वृक्ष दक्षिण दिशा में वैश्यों के लिए उत्पात सूचक हैं ।।26॥
कट कण्ट किनो रूक्षा: कृष्णपुष्यफलाश्च ये।
वामण्यां दिशि वृक्षाः स्युः शूद्राणां प्रतिद्गला: ॥27॥ कटु, कांटों वाले, मक्ष , काल रंग या फूल-फल बाले वृक्ष पश्चिम दिशा में शूद्रों के लिए उत्पात सूचक हैं 12711
"महान्तश्चनुरनाश्व गाहाश्चापि विश् ि ।
शनमध्य स्थिताः सत्त: स्थावरा प्रतिपुद्गला ॥28।। महान् चौकी, और विप का ग गाद गजबूत और वन में. मध्य में स्थित वृदा स्थावगें . यहाँ । विवामियों के लिए उत्पान गचा होने हैं ।।28।।
हस्वाश्च तयो यन्यं अन्ये जाता वनस्थ च ।
अचिरोद्भवकारा य यार्थिनां प्रतिपुद्गला: 1129॥ छोटे वृक्ष और जो अन्य वक्ष बन । अगा में पान हा हैं एवं गीत्र ही उत्पन्न हुए गांधों जैगा जिनका आधार है अर्थात जो छोटे है, याची - आक्रमण करने वालों के लिए उत्पात मचक हैं ।।29।।
1, फलाच न म । 2. क्षिणा | 3
नाव म्यागिः ।